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________________ आगमोत्तरकालीन कथा साहित्य ३२१ शब्दों एवं मुहावरों का भी पर्याप्त प्रयोग किया है । जिससे यह स्वतः प्रमाणित हो जाता है कि निरुक्तकार की ही भाँति पाणिनि ने भी 'संस्कृत' को 'भाषा' माना है । भारत के अनेकों संस्कृत प्रेमी राजाओं ने यह नियम बना रखा था कि उनके अन्तःपुर में संस्कृत का प्रयोग किया जाये । राजशेखर ने इस प्रसंग की प्रामाणिकता के लिए साहसाङ्कपदवीधारी उज्जयिनी नरेश विक्रम का उल्लेख किया है 11 और, इसी सन्दर्भ में ग्यारहवीं शताब्दी के सुप्रसिद्ध राजा धारा नरेश भोज का नाम भी लिया जा सकता है ।" ये सारे प्रमाण स्वतः बोलते हैं कि संस्कृत, मात्र ग्रन्थों में प्रयुक्त की जाने वाली भाषा नहीं थी, अपितु वह 'लोक-भाषा' थी। बाद में 'लोक' शब्द से जन-साधारण का बोध न करके, मात्र 'शिष्ट' व्यक्तियों का ही बोध किया जाने लगा, ऐसा प्रतीत होता है । वाल्मीकि रामायण के सुन्दरकाण्ड में, सीताजी के साथ, किस भाषा में बातचीत की जाये ? यह विचार करते हुए, हनुमान के मुख से, बाल्मीकि ने कहलवाया है ' - 'यदि द्विज के समान मैं संस्कृत वाणी बोलूंगा, तो सीताजी मुझे रावण समझकर डर जायेंगी ।' वस्तुतः, भाषा शब्द, उस बोली के लिए प्रयुक्त होता है, जो लोक-जीवन के बोलचाल में प्रयुक्त होती है । पहर्षि यास्क ने और महर्षि पाणिनि ने भी इसी अर्थ में 'भाषा' शब्द का प्रयोग किया है। सिर्फ एक बात अवश्य गौर करने लायक है । वह यह कि 'भाषा' के अर्थ में 'संस्कृत' शब्द का प्रयोग, इन पुरातन-ग्रन्थों में नहीं मिलता । 1 वाक्य- - विश्लेषण, तथा उसके तत्वों की समीक्षा करना, किसी भाषा का संस्कार कहा जाता है । प्रकृति, प्रत्यय आदि के पुनः संस्कार द्वारा १ काव्यमीमांसा - पृष्ठ - ५० २ संस्कृत शास्त्रों का इतिहास – पं० बलदेवजी उपाध्याय, पृष्ठ ४२८ - ४३, काशी - १९६६ ३ यदि वाचं प्रदास्यामि द्विजातिरिब संस्कृतम् । रावणं मन्यमाना मां सीता भीता भविष्यति || - वाल्मीकि रामायण, सुन्दरकाण्ड ५ -१४ ४ भाषायामन्वध्यायश्च - निरुक्त १-४ ५ भाषायां सदवसश्रुवः - अष्टाध्यायी - ३/२/१०८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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