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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
स्तिकाय स्थिति में । जैनदर्शन के अतिरिक्त भारत के अन्य किसी भी दर्शन में इन शब्दों का प्रयोग एवं चिन्तन नहीं है। आधुनिक वैज्ञानिकों में सर्वप्रथम 'न्यूटन' ने गतितत्त्व (Medium of Motion) को माना है। सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक 'अल्बर्ट आइन्स्टोन' ने गतितत्त्व की स्थापना करते हुए कहालोक परिमित है तो अलोक भी परिमित है। लोक परिमित होने का मल कारण यह है कि शक्ति लोक के बाहर नहीं जा सकतो। लोक के बाहर उस शक्ति का-द्रव्य का अभाव है, जो गति में सहायक है। वैज्ञानिकों ने जिसे 'ईथर'-गतितत्त्व कहा है, उसे ही जैन साहित्य में धर्मद्रव्य कहा है।
यहां पर गति से तात्पर्य है- एक स्थान से दूसरे स्थान में जाने की क्रिया। धर्मद्रव्य इस प्रकार की क्रिया में सहायक होता है। जैसे-मछली स्वयं तैरती है तथापि उसकी क्रिया बिना पानी के नहीं हो सकती। पानी उसके तैरने में सहायक है। जब मछलो तैरना चाहती है तब उसे पानी की सहायता लेनी पड़ती है। यदि वह तैरना न चाहे तो पानी बल-प्रयोग नहीं करता। वैसे ही जीव और पुद्गल जब गति करते हैं तब धर्मद्रव्य सहायक होता है 'ईथर' आधुनिक भौतिक विज्ञान की एक महत्वपूर्ण शोध है।
१. (क) उत्तराध्ययन ३६/४ ।
(ख) समवायांग १४६ P. I am quite sure that you have heard of Ether befoje now, but
please do not confuse it with the liquid Ether used by surgeons to render a patient unconscious for an operation. If you should ask me just what the Ether is, that is the Ether that conveys electromagnetic-waves. I would answer that I cannot accurately describe it. Neither can anyone else. The test that anyone could do would be to say that Ether is invisible body and that through it electromagnetic-waves can be propagated.
But let us see from a practical standpoint the nature of the thing callcd 'Ether'. We are all quite familiar with the existence of solids, liquids and gases. Now suppose that inside a glass
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