SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८४ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा गर्दभाली और संजय राजा उत्तराध्ययन अध्ययन अठारह में गर्दभाली और संजय राजा का वर्णन आया है । काम्पिल्य नगर का अधिपति राजा संजय शिकार के लिए केशर उद्यान में पहँचा। उसने मगों को मारा। उसकी दृष्टि एकाएक ध्यान-मुद्रा में अवस्थित गर्दभाली मुनि पर गिरी । वह भय से काँप उठा। मैंने मुनिराज के मृग को मारकर आशातना की है। वह घोड़े से नीचे उतरकर मुनि से क्षमा-याचना करने लगा। पर मुनि ध्यानस्थ थे। अतः राजा भय से और अधिक व्यथित हो गया कि मुनि यदि ऋद्ध हो गये तो अपने दिव्य तेज से समूचे राज्य को नष्ट कर देंगे । अतः उसने पुनः मुनि से निवेदन किया। मुनि ने ध्यान से निवृत्त होकर उससे कहा-मै तुझे अभय प्रदान करता हूँ। तुम भी सभी प्राणियों को अभय प्रदान करो। मुनि के त्याग वैराग्य से छलछलाते हुए उपदेश को श्रवण कर राजा संजय श्रमण बन गया। एक दिन एक क्षत्रिय मुनि संजय मुनि के पास आया और उसने पूछा-तुम्हारा नाम व गोत्र क्या है ? तुम क्यों मुनि बने हो? किन आचार्यों की सेवा कर रहे हो ? संजय मुनि ने कहा-मेरा नाम संजय है, गौतम गोत्र है, मेरे आचार्य गर्दभाली हैं। मैं मुक्ति के लिए श्रमण बना हूँ। आचार्य की आज्ञानुसार कार्य करता हूँ, इसीलिए विनीत हूँ। इस कथानक में भरत, सगर, मघवा, सनत्कुमार, शान्ति, अर, कुन्थु, महापद्म, हरिषेण, जय आदि चक्रवर्ती राजाओं के नाम हैं । दशार्णभद्र, नमि, करकण्डु, द्विमुख, नग्गति, उदायण, काशिराज, विजय, महाबल आदि राजाओं के नाम हैं। दशार्ण, कलिंग, पांचाल, विदेह, गान्धार, सौवीर, काशी आदि देशों के नाम हैं। क्रियावाद, अक्रियावाद, विनयवाद और अज्ञानवाद का भी उल्लेख हुआ है। इस तरह प्रागऐतिहासिक और ऐतिहासिक सामग्री का सुन्दर संकलन है । इषुकार राजा उत्तराध्ययन, अध्ययन चौदह में इषुकार राजा का वर्णन है । प्रस्तुत कथानक के मुख्य छह पात्र हैं-(१) इषुकार महाराजा (२) महारानी कमलावती (३) भृगु पुरोहित (४) पुरोहित की पत्नी यशा (५) पुरोहित के दो पुत्र । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy