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उत्तम पुरुषों की कथाएँ १३१ कूर्मपुराण शिवपुराण, नारदपुराण प्रभृति ग्रन्थों में स्पष्ट रूप से संकेत है कि ऋषभपुत्र भरत के नाम से ही प्रस्तुत देश का नामकरण 'भारतवर्ष' हुआ । पाश्चात्य विद्वान श्री जे० स्टीवेन्सन का भी यही अभिमत है और प्रसिद्ध इतिहासज्ञ गंगाप्रसाद एम० ए० व रामधारी सिंह दिनकर का भी यही मन्तव्य है।
भरत महान् प्रतिभा सम्पन्न, प्रतापशाली एवं परम यशस्वी सम्राट थे । अन्य सम्राटों का जीवन जहाँ भौतिक दृष्टि से महान् होता है, वहाँ भरत चक्रवर्ती भौतिक दृष्टि से ही नहीं अपितु आध्यात्मिक दृष्टि से भी महान् थे। जिस दिन भगवान् ऋषभदेव को केवलज्ञान हुआ, उसी दिन भरत की आयूधशाला में चक्र-रत्न उत्पन्न हुआ। ये समाचार सुनकर उन्होंने मुकूट के अतिरिक्त अन्य सारे पहनने के आभूषण आयुधशाला के रक्षक को प्रदान किये। पहले उन्होंने भगवान को वन्दन कर केवलज्ञान महोत्सव मनाया उसके पश्वात् स्वयं आयुधशाला में जाकर चक्ररत्न को प्रणाम किया एवं अष्टान्हिका महोत्सव मनाया। एक हजार देवों से सुसेवित चक्र रत्न आकाश-मार्ग से चलकर विनीता नगरी के मध्य भाग में होता हआ गंगा के दक्षिणी तट से मागधतीथ की ओर बढ़ा । चक्र-रत्न द्वारा प्रदर्शित मार्ग का अनुसरण क र भरत चक्रवर्ती पीछे
१ ऋषभाद्भरतो जज्ञे वीरः पुत्रशताग्रजः । सोभिषिच्यर्षभः पुत्रं भरतं पृथ्वीपतिः ।।
-~-कूर्मपुराण ४१३८ २ खण्डानि कल्पयामास नवान्यपि हिताय च । तत्राऽपि भरते ज्येष्ठं खण्डेऽस्मिन् स्पृहणीय के । तन्नाम्ना चैव विख्यातं खंडं च भारतं तदा । सर्वेष्वविचरखंडेषु श्रेष्ठं भरतमुच्यते ॥
-शिवपुराण ५२/८५ ३ आसीत् पुरा मुनिश्रेष्ठो, भरतो नाम भूपतिः ।। आर्षभो यस्य नाम्नेदं, भारत खण्डमुच्यते ॥
-नारदपुराण ४८/५ 7 Brahmanical puranas prove Rishabha to be the father of that Bharat, from whom India tcok to name ''Bharatvarsha."
-Kalpasutra Introd., P. XVI. ५ ऋषियों ने हमारे देश का नाम प्राचीन चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर भारतवर्ष रखा।
-प्राचीन भारत, पृष्ठ ५ ६ भरत ऋषभदेव के ही पुत्र थे,जिनके नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा।
-संस्कृति के चार अध्याय, पृष्ठ १३६
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