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उत्तम पुरुषों की कथाएँ
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औपपातिक सूत्र में आये हुए भगवान् महावीर के शरीर का शब्दचित्र भी इस ग्रन्थ में निर्दिष्ट है और साथ ही भगवान् महावीर के अन्तेवासी श्रमणों का भी निरूपण हुआ है । प्रभु महावीर ने एक मास बीस रात्रि व्यतीत होने पर वर्षावास पर्युषणा की । भगवान् के जिन-जिन क्षेत्रों में वर्षावास सम्पन्न हुए, उनकी सूची भी प्रस्तुत ग्रन्थ में दी गई है। उनका परिनिर्वाण, अन्तिम उपदेश, गौतम को केवलज्ञान, नव मल्लवी, नव लिच्छवी राजाओं के द्वारा किये गये पौषध और द्रव्य-उद्योत का भी निरूपण हआ है। निर्वाण के पश्चात् भस्मग्रह और उसका प्रभाव, महावीर का शिष्य समुदाय, महावीर के आठ राजा शिष्य हुए थे, महावीर के समय तीर्थंकर नामकर्म का नौ व्यक्तियों ने अनुबन्धन किया था। उनके तीर्थ में नौ प्रवचन निन्हव हुए थे । इस प्रकार आगम साहित्य में आये हए महावीर चरित्र को प्रस्तुत ग्रन्थ में संकलित किया गया है । महावीर के तेजस्वी व्यक्तित्व को समझने के लिए उपयुक्त प्रसंग अत्यन्त उपयोगी हैं ।
महापद्म-चरित्र सम्राट श्रेणिक महावीर प्रभु के परम भक्त थे। उन्होंने भगवान् महावीर के तीर्थ में तीर्थंकर नामकर्म का अनुबन्धन किया था। वे नरक से निकलकर आगामी उत्सर्पिणी काल में तीर्थंकर पद को प्राप्त करेंगे। उनका रत्नों की वर्षा होने के कारण पिता ने 'महापद्म' नाम रखा। दूसरा नाम 'देवसेन' और तीसरा नाम 'विमलवाहन' रखा गया। तीस वर्ष गृहस्थाश्रम में रहकर वे श्रमण बनेंगे। कुछ अधिक बारह वर्ष तक उपसर्गों को सहन कर केवलज्ञान प्राप्त करेंगे। वे पच्चीस भावना सहित पाँच महाव्रतों का तथा षट्जीवनिकाय का उपदेश देंगे । भगवान् महावीर की तरह ही उनके भी नौ गण तथा ग्यारह गणधर होंगे। उनकी बहत्तर वर्ष की आयु होगी। महापद्म तीर्थंकर के समय आठ राजा दीक्षित होंगे। इस प्रकार महापद्म का चरित्र विस्तार के साथ निरूपित है।
__ स्थानांग और समवायांग में आये हुए विविध तीर्गकरों के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सूचनाएँ भी इसमें दी गई हैं।
भरत-चक्रवर्ती भगवान ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र भरत थे, जिनके नाम पर ही 'भारतवर्ष' का नामकरण हुआ है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में भरत-चक्रवर्ती का वर्णन करते हुए लिखा है-भरत चक्रवर्ती और देव के नाम से 'भारतवर्ष'
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