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________________ ७२ | अप्पा सो परमप्पा करना पड़ता है ? कितनी भारो, भरकम मशीनें लगानी पड़ती हैं ? कितनी सम्पत्ति, समय, श्रम और शक्ति खर्च करनी पड़ती है ? इतना सब कुछ करने पर भी विधिपूर्वक योग्यरूप से उन मशीनों का संचालन करने पर ही पानी में से बिजली मिल सकती है, अन्यथा करोड़ों वर्षों तक पानी ही पड़ा रहे तो उसमें से अंशमात्र भी बिजलो प्राप्त नहीं हो सकती । इसी प्रकार दूध में से मक्खन प्राप्त करने के लिए भी उतना ही, उसी प्रकार का तदनुरूप पुरुषार्थ करना पड़ता है । इसी प्रकार शरीर में रही हुई आत्मा को प्राप्त किया जा सकता है, बशर्ते कि सहज ज्ञान, शक्ति, और आनन्द के पिण्डरूप आत्मा का अनुभव-ज्ञानोपयोगरूप पुरुषार्थ किया जाए। __ महापुरुष समझाते हैं कि आत्मा अनुभवगम्य है। वह इन्द्रियो या मन बुद्धि की पकड़ में नहीं आती, क्योंकि वह इन्द्रियातीत वस्तु है। इसी तथ्य को परमानन्द-पंचविंशति में अभिव्यक्त किया गया है अनन्तब्रह्मणो रूपं निजदेहे व्यवस्थितम् । ज्ञानहीना न पश्यन्ति, जात्यन्धा इव भास्करम् ॥ परमानन्द-संयुक्त निर्विकारं निरामयम् । ध्यानहीना न पश्यन्ति निजदेहे व्यवस्थितम् ।। सदानन्दमयं जीवं यो जानाति स पण्डितः । स सेवते निजात्मानं परमानन्द-कारणम् ॥1 इनका भावार्थ यह है कि जिस प्रकार जन्मान्ध जीव आकाश में स्थित सूर्य को नहीं देख सकते, इसी प्रकार अपने शरीर में स्थित अनन्तज्ञानादि-चतुष्टय-सम्पन्न आत्मा (ब्रह्म) के रूप = स्वरूप को ज्ञानोपयोग से हीन व्यक्ति नहीं देख सकते । इसी प्रकार अपने शरीर में स्थित, किन्तु शरीर के गुण-धर्म एवं स्वभाव से सर्वथा पृथक्, निलिप्त तथा राग, द्वेष, मोह, काम, क्रोध आदि विकारों से सर्वथा रहित, निरामय एवं परम आनन्द से युक्त आत्मा को अन्तान (तन्मयतापूर्वक ज्ञानोपयोग) से रहित व्यक्ति नहीं देख सकते। सत्-चित्-आनन्दमय शुद्ध आत्मा को जो जानता है, वही पण्डित (सज्जन) है। वही परम आनन्द के कारणभूत अपनी आत्मा का अनुभव सेवन कर पाता है । १ परमानन्द-पंचविशति श्लोक, ६, १, ६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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