SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्मा को कहाँ और कैसे खोजें ? परमात्मा बनने के लिए आत्मदर्शन आवश्यक आत्मा के अस्तित्व और उसके स्वरूप का बोध हो जाने पर भी प्रश्न यह रह जाता है कि क्या इतने मात्र से ही आत्मा परमात्मा बनने की ओर अग्रसर हो सकता है ? इसके उत्तर में यही कहा जा सकता है कि कई विद्वान या शब्द शास्त्री भी आत्मा का अस्तित्व एवं उसके स्वरूप का विश्लेषण व्याकरण से, विविध प्रमाणों, युक्तियों और तर्कों से सिद्ध कर सकते हैं, परन्तु इतने मात्र से उन्होंने आत्मा का अस्तित्व और स्वरूप हृदयंगम कर लिया या अनुभूत एवं निश्चित कर लिया, यह नहीं कहा जा सकता । केवल आत्मा के अस्तित्व एवं स्वरूप को सिद्ध करने मात्र से कोई व्यक्ति सहसा परमात्मा नहीं बन सकता, अथवा परमात्मपद पर पहुँचने के लिए उत्साहित नहीं हो सकता । परमात्मा बनने के लिए आत्म-साधना के केन्द्रीभूत आत्मा को देखना, ढूंढ़ना, खोजना और पाना अतीव आवश्यक है। जब तक साधक अपनी आत्मा में स्थित नहीं हो जाता, तब तक वह परमात्मपद को प्राप्त नहीं कर पाता। आत्मा में स्थित होने के लिए आत्मा को जाननादेखना, ढूंढ़ना-खोजना और पाना बहुत आवश्यक है। इसीलिए ऋषि याज्ञवल्क्य ने मैत्रेयी से कहा था ( ५७ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy