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५२ | अप्पा सो परमप्पा दोनों में भेद-रेखा खींचने वाला यदि कोई असाधारण लक्षण है तो वह ज्ञान ही है। चेतन ज्ञान गुण वाला है, जड़ ज्ञान गुण से रहित है। जिस प्रकार पानी और उसकी शीतलता-गुण दोनों तादात्म्य सम्बन्ध से रहे हुए हैं । लाख उपाय करने पर भी पानी का शीतलता गुण सर्वथा नष्ट नहीं होता, वैसे ही आत्मा के साथ तादात्म्य सम्बन्ध से रहा हुआ ज्ञान गुण भी सर्वथा कदापि नष्ट नहीं होता। आत्मा का कितना ही पतन क्यों न हो जाए, निगोद जैसे अति सूक्ष्म शरीर वाले वनस्पतिकाय आदि स्थावर जीवों की निम्नतम स्थिति तक क्यों न पहुँच जाए, फिर भी आत्मा में रहा हुआ ज्ञान गुण पूर्णतया आवृत या नष्ट नहीं हो पाता । यद्यपि सूक्ष्मशरीरी आत्मा में ज्ञान को व्यक्त करने के बाह्य साधन नहीं होते, उनका ज्ञान अव्यक्त ही रहता है, फिर भी यों नहीं कहा जा सकता कि उन सूक्ष्मशरीरी आत्माओं में ज्ञान नहीं है । सूर्य का प्रकाश घने बादलों से कितना ही ढंक जाए, फिर भी उसका प्रकाश और दिवससूचक उजाला कभी नष्ट नहीं होता, इसी प्रकार आत्मा का ज्ञान गुण कर्मों के सघन बादलों से कितना ही आवृत हो जाए, फिर भी ज्ञान का क्षीण प्रकाश उसके अन्दर चमकता रहता है।
__ वैशेषिकों का यह कथन तो सर्वथा युक्ति और अनुभूति से विरुद्ध है कि आत्मा की मुक्ति तभी होगी, जब ज्ञान नष्ट हो जाएगा। भला, जब आत्मा का ज्ञान गुण ही नष्ट हो गया, तब उस | स्वरूप क्या बचा ? गुण के बिना गुणी का कोई अस्तित्व ही नहीं रह पाता। तेजोहीन अग्नि को कोई अग्नि नहीं कहता, इसी प्रकार ज्ञान गुणहीन आत्मा को कोई आत्मा नहीं कहता। अतः ज्ञान आत्मा का असाधारण गुण है, वह कभी नष्ट नहीं होता, अविच्छिन्न रूप से आत्मा के साथ रहता है।
आत्मा पंचभूतमय नहीं है
आत्मा चार या पांच महाभूतों की बनी हुई है, और एक दिन शरीर के नष्ट होने के साथ वह यहीं नष्ट हो जाएगी, फिर उसे कहीं जाना है, न आना है । ऐसा जो चार्वाक, देवसमाज आदि अनात्मवादियों का कहना है, वह भी सर्वथा असत्य है। प्रकृति, पंचभूत आदि सब जड़ पदार्थ हैं, उनमें कोई चैतन्य या ज्ञान गुण नहीं होता, जबकि आत्मा सचेतन होती है, उसमें ज्ञानगुण होता है। जिस वस्तु में जानने की शक्ति या स्वभाव नहीं है, वह जड़ है और जिसमें जानने की शक्ति या स्वभाव है,
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