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________________ आत्मा का यथार्थ स्वरूप । ५१ नहीं सकता। यह तभी हो सकता है, जब आत्मा को परिणामोनित्य माना जाए । इतना ही नहीं, क्रोध, क्षमा, हास्य, शोक आदि भाव भी जिस क्षण आत्मा से उत्पन्न और व्यक्त होते हैं, उसके कितने ही दिनों, महीनों या वर्षों बाद वह उन्हें कहता है कि मुझे अमुक समय क्रोध आ गया था, मैंने अमुक समय अमुक को क्षमादान दिया आदि । यदि आत्मा निरन्वय क्षणिक हो तो चिरकाल के पश्चात् वह उस भाव का कथन कैसे कर पाता है ? अतः आत्मा का सदा अस्तित्व है, यही घटित होता है। आत्मा को निरन्वय क्षणिक मानने से कर्मसिद्धान्त भी खण्डित हो जाएगा। कर्म फिलोसोफी यह है कि जो कर्म करता है, वही उसका फल भोगता है । कर्ता और भोक्ता दोनों एक ही होते हैं, पृथक्-पृथक् नहीं । आत्मा को निरन्वय क्षणिक मानने से 'करे कोई और भरे कोई' वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है। कई बार कर्म जब बंधते हैं तब तत्काल उसका फल नहीं मिलता। अधिकांश कर्मों का फल दीर्घकाल के पश्चात् भोगा जाता है । अतः जिसने वे कर्म बांधे थे, यदि उसका अस्तित्व फल भोगने के समय तक हो तभी तो वह उन कर्मों का फल भोग सकेगा। अन्यथा, उन कर्मों का फल कौन भोगेगा ? एक के किये हुए कर्मों का फल दूसरा कैसे भोग सकता है ? अपराध किसी का और सजा कोई और भोगे, ऐसा तो व्यवहारिक जगत् में भी नहीं होता, फिर आध्यात्मिक जगत् में ऐसा कैसे हो सकता है ? अतः सभी दृष्टियों से आत्मा नित्य हो सिद्ध होता है, निरन्वय क्षणिक नहीं। आत्मा का सदैव सहचर मूलगुण : ज्ञान आत्मा का असाधारण लक्षण है-ज्ञानमय, उपभोगमय । दूसरे शब्दों में कहें तो ज्ञान और आत्मा दोनों अभिन्न हैं । जो ज्ञान है, वही आत्मा है, जो आत्मा है वही ज्ञान है। यह सिद्धान्त भी निश्चित है कि आत्मा के बिना ज्ञान नहीं, और ज्ञान के बिना आत्मा नहीं । इस दृष्टि से वैशेषिक दर्शन का यह मत सर्वथा अनुभव और युक्ति से विरुद्ध है कि 'ज्ञान आत्मा का स्वाभाविक गुण नहीं है।' जड़ और चेतन १ जे आया से विन्नाया, जे विन्नाया से आया । -आचारांग १/५/५ । २ "अप्पाणं विणु णाणं, णाणं विणु अप्पगो न सन्देहो ॥" -नियमसार १७१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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