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________________ आत्मा का यथार्थ स्वरूप | ४६ नहीं होती। जन्म-मरण शरीर का होता है। इस कारण व्यवहारनय की अपेक्षा से यह माना जाता है, शुभाशुभकर्मवशात् आत्मा विविध गतियों और योनियों में तथा विविध पर्यायों (शरीरों) में उत्पन्न होता है । अतः पर्यायदृष्टि से भले ही एक गति से दूसरी में जाने की अपेक्षा से आत्मा को आदि मानी जाती हो, द्रव्य (निश्चय) दृष्टि से तो वह अनादि हो है। निश्चयदृष्टि से आत्मा अनिधन है, अर्थात् वह अमर है। कभी मरता नहीं है। व्यवहारदृष्टि से जो यह कहा जाता है कि अमुक जीव मर गया, उसका अर्थ भी यही है कि उसने जिस शरीर को धारण किया था, उससे उसका सम्बन्ध-विच्छेद हो गया। आयुष्य की अवधि पूर्ण हो जाने से उसका उस शरीर से छुटकारा हो गया। शरीर-परिवर्तन की आत्मा की इस क्रिया को मरण कहा जाता है, वस्तुतः आत्मा का यह मरण नहीं है। आत्मा को 'अविनाशी' इसलिए कहा गया है कि शस्त्र, अग्नि, पानी, हवा आदि कोई भी पदार्थ आत्मा का नाश नहीं कर सकता, यहाँ तक कि मन्त्र-तन्त्र, औषधादि प्रयोगों से भी आत्मा विनष्ट नहीं हो सकता । शरीर अवश्य कटता, जलता, गलता, सूखता या नष्ट होता दिखाई देता है । इसे 'अक्षय' भी इसलिए कहा गया है कि आत्मा का कभी क्षय या हास नहीं होता । वह भूतकाल में जितना था, उतना ही आज है, और भविष्य में भी उतना ही रहेगा। उसमें किसी भी प्रकार की घट-बढ़ नहीं होती, हानि वृद्धि होती है शरीर में। आत्मा को 'ध्रुव' इसलिए कहा गया है कि निश्चयदृष्टि से वह तीनों काल में स्थायी रहता है। पर्यायदृष्टि से वह हाथी, घोड़ा, सिंह, मनुष्य, देव, नारक आदि नाना पर्यायें धारण करता है, किन्तु द्रव्याथिकनय की अपेक्षा द्रव्यरूप से वह स्थायी रहता है। __ 'आत्म। नित्य है,' यह निश्चय (द्रव्याथिक) दृष्टि से कहा गया है, क्योंकि वह सदा एक-सा रहता है, किन्तु पर्यायाथिकनय की अपेक्षा से वह नाना पर्यायें धारण करता है, इसलिए अनित्य भी माना गया है। आत्मा निरन्वय क्षणिक भी नहीं है बौद्धदर्शन की तरह जैनदर्शन आत्मा को निरन्वय क्षणिक नहीं मानता। निरन्वय क्षणिक का अर्थ है-आत्मा क्षण-क्षण में उत्पन्न और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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