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________________ ३४ | अप्पा सो परमप्पा पदार्थ है जिसकी सहायता के बिना इन्द्रियाँ या मन अपना कार्य नहीं कर पाते । वह अतिरिक्त पदार्थ आत्मा है। जब आत्मा का ध्यान दूसरी ओर होता है, तब अमुक चीज को देखने, सुनने, संघने आदि के प्रति उपेक्षा-सी रहती है, तब इन्द्रियाँ मौजूद रहने पर भी कार्य नहीं कर पातीं, जिसके गौर करने से इन्द्रियाँ कार्य करती हैं, वह पदार्थ इन्द्रियों से भिन्न है, वही आत्मा है। (७) प्रत्येक इन्द्रिय अपने-अपने विषय का ज्ञान करती है, इसके काफी समय के पश्चात् समस्त इन्द्रियों के विषयों का संकलनात्मक ज्ञान जिसे होता है वही आत्मा है। एक इन्द्रिय या सभी इन्द्रियाँ मिलकर सभी विषयों का संकलनात्मक ज्ञान कर नहीं सकतीं। (क) तर्क और अनूमान प्रमाण के अतिरिक्त आगम प्रमाण के द्वारा भी आत्मा का अस्तित्व सिद्ध होता है । आगम कहते हैं-आप्त (वीतराग-सर्वज्ञ) पुरुषों के उपदेश वाक्य को। जैन आगमों और ग्रन्थों में यत्रतत्र आत्मा के स्वतन्त्र अस्तित्व (जीवतत्व) का उल्लेख मिलता है । आप्त पुरुष प्रत्यक्षज्ञानी थे। उन्होंने अनुभव और प्रत्यक्षज्ञान के आधार पर आत्मा का स्वतन्त्र अस्तित्व बताया है । इन सब प्रमाणों के बावजूद भी परोक्षज्ञानी नास्तिक श्रद्धा और विश्वास को तथा प्रत्यक्षज्ञानी के अनुभव को ताक में रखकर वर्षों तक केवल प्रत्यक्ष को मानने की रट लगाता रहा, तर्क की कसौटी पर कसकर स्वीकार करने की बात भी नजर अन्दाज करता रहा । वर्तमान परामनोवैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा आत्मा की झलक वर्तमान मनोवैज्ञानिकों तथा परामनोवैज्ञानिकों ने आत्मा के अस्तित्व के प्रश्न को प्रयोग की कसौटी पर कसा। पिछले लगभग ५० वर्षों से वे इस पर प्रयोग पुनर्जन्म और पूर्वजन्म की स्मृति की, यानी जाति-स्मतिज्ञान की उन्होंने सैकड़ों घटनाओं का अध्ययन किया है। डॉ० स्टीवेन्सन इत्यादि अनेक परामनोवैज्ञानिकों ने गहराई से छानबीन करके सैकडों बच्चों के पूर्वजन्म को तथा पुनर्जन्म की घटनाओं को सत्य पाया १ (क) 'अस्थि मे आया ओववाइए।' -आचारांग, श्रुत० १, अ० १, सूत्र ४ । (ख) 'जे आया से विन्नाणे, जे विन्नाणे से आया ।' -वही, श्रुत १, उ०५, सूत्र ५। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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