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________________ आत्मा का अस्तित्व | ३५ है। उनकी प्रामाणिकता की जांच की है। जिन-जिन बालकों के पूर्वजन्म पुनर्जन्म की घटनाओं का पता लगा, वे स्वयं घटनास्थल पर गये, जाँच की और उन्होंने निष्कर्ष के रूप में जो वर्णन किया है, वह निःसन्देह आश्चर्य में डालने वाला है। इनके अतिरिक्त उन्होंने अनेक ऐसी घटनाओं का भी अध्ययन किया, जिनमें किसी व्यक्ति को भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास हो जाता है। कई व्यक्ति अपने विचारों को बिना किसी माध्यम के अपने इष्ट व्यक्ति तक पहुँचा सके हैं। कई व्यक्ति बिना किसी इन्द्रियादि की सहायता के माध्यम के, किसी घटित घटना को साक्षात् जान लेते हैं, और स्पष्ट कह देते हैं तथा दूसरे व्यक्ति की वर्तमानकालीन वृत्ति-प्रवृत्ति को भी कई लोग साक्षात् जान सके हैं। परामनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रत्यक्ष ज्ञात एवं अभिव्यक्त इन तथ्यों के आधार पर आत्मा को स्वीकार न करने वाले नास्तिकों तथा पूर्वजन्म और पुनर्जन्म को न मानने वाले कतिपय धर्मसम्प्रदाय के लोगों को यह सोचने को बाध्य कर दिया है कि एक ऐसा भी पदार्थ है, जो इन्द्रियों, मन, बुद्धि आदि से परे है, जो भौतिक या पौद्गलिक नहीं है, मूर्त या रूपी नहीं है, तथापि जो ज्ञानमय है। इस प्रकार आत्मा नामक स्वतन्त्र पदार्थ के अस्वीकार करने से अब वे रुक गये हैं । पुनर्जन्म के ये सबूत भो आत्मा को सिद्ध करने में सक्षम इसी प्रकार पुनर्जन्म के कई प्रमाण तो प्रत्यक्ष मिलते हैं। जिन व्यक्तियों की प्रबल आकांक्षा अतृप्त रही, अथवा जो अकाल में किसी कारणवश काल-कवलित हो गये, वे लोग हिन्दु धर्मपरम्परा के अनुसार प्रेतयोनि तथा जैनपरम्परानुसार व्यन्तरदेवयोनि में जन्म लेते हैं, और अपने साथ पूर्वजन्म में जिनके साथ कोई प्रबल मोह, आसक्ति या द्वेष, घृणा, शत्रुता रही हो, तो वे पूर्वजन्म के वेष में आकर या तो अपनी अतृप्त आकांक्षा की पूर्ति के लिए चक्कर लगाते हैं, किसी रिश्तेदार के मुह से बोलते हैं, अथवा अदावत हुई हो तो उसे तरह-तरह से कष्ट देते हैं । कुछ व्यक्ति इन मृतात्माओं से बातचीत करने में माध्यम भी बनते हैं। मृतास्माओं के साथ बातचीत के निष्कर्ष भी सही निकले हैं। इन उदाहरणों से मरने के बाद पुनर्जन्म सिद्ध होता है । थियोसोफिकल सोसाइटी को अधिष्ठाता मेडम लेवेट्सकी ने मृतास्माओं का आह्वान करने के अनेक प्रयोग किये हैं। प्लेंचेट के माध्यम से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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