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________________ ३२ | अप्पा सो परमप्पा जिस प्रकार बिजली, हवा आदि को प्रत्यक्ष न देख पाने पर भी बल्ब में प्रकाश, पंखा, हीटर, कूलर, मशीनें आदि चलते देखकर बिजली या हवा के कार्यों को देखकर बिजली या हवा का अस्तित्व मानते हैं, उसी प्रकार आत्मा भी प्रत्यक्ष न दिखाई न देने पर भी उसके निमित्त से हुए इन्द्रियों द्वारा विविध विषयों के ज्ञान, मन के द्वारा मनन-चिन्तन और बुद्धि द्वारा निर्णय आदि कार्य देखकर आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करना चाहिए । विविध प्रमाणों से सिद्ध : आत्मा का अस्तित्व इसके अतिरिक्त अनुमान, तर्क, आगम, सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से आत्मा का अस्तित्व सिद्ध हो जाता है। जैनदर्शन ही नहीं, जितने भी आस्तिक दर्शन हैं, वे सब आत्मा के अस्तित्व को मानते हैं। जैनदर्शन आत्मा का स्वतन्त्र अस्तित्व निम्नोक्त प्रमाणों से सिद्ध करता (१) "आत्मा नहीं है" इस प्रकार का कहने वाला तथा निर्णय करने वाला कौन है ? आश्चर्य होता है कि स्वयं आत्मा होते हुए भी 'आत्मा नहीं है' इस प्रकार कहता है ? इन्द्रियाँ, मन, वाणी, बुद्धि आदि इस प्रकार का निर्णय नहीं कर सकतीं, क्योंकि ये सब जड़ हैं । जड़ वस्तु में स्वयं निर्णय करने की शक्ति नहीं है । 'मैं और मेरा' ऐसी प्रतीति किसको होती है ? विचार करने पर अवश्य प्रतीत होगा कि आत्मा के अतिरिक्त अन्य किसी को भी ऐसा संवेदन हो नहीं सकता। (२) न्यायशास्त्र का यह एक सर्वमान्य नियम है कि विश्व में जिस पदार्थ का अस्तित्व होता है, उसी के विषय में अस्तित्व या नास्तित्व का विकल्प उठता है। अगर आत्मा नामक पदार्थ सष्टि में नहीं होता तो उसके नास्तित्व का विकल्प उठता ही नहीं। अतः आत्मा के नास्तित्व का विकल्प उठने से आत्मा का अस्तित्व सिद्ध होता है। क्या आपने किसी व्यक्ति को दूसरे से यह कहते देखा-सुना है कि 'जरा, देखो तो मैं हूँ या नहीं ?' किसी अन्य व्यक्ति या पदार्थ के विषय में तो ऐसी शंका उठना स्वाभाविक है, किन्तु स्वयं ही स्वयं के अस्तित्व के विषय में शंका उठाए, ऐसा व्यक्ति मूर्ख-शिरोमणि ही कहलाता है। १ आत्मानी शंका करे, आत्मा पोते आप । शंकानो करनार ते, अचरज एह अमाप । -आत्मसिद्धि दो. ५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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