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________________ २८ | अप्पा सो परमप्पा उनके समूह के एकत्रित होने पर भी उसमें से चैतन्य कदापि उत्पन्न नहीं हो सकता । जड़ से कभी चेतन उत्पन्न नहीं होता, और न ही चेतन से जड़ उत्पन्न होता है | अतः चैतन्यमय आत्मा एक स्वतन्त्र द्रव्य है जो शरीर के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता है । वह उस जीव के कर्मानुसार दूसरी गति एवं योनि में चला जाता है । शरीर और आत्मा के स्वभाव में अन्तर एक समाधान यह भी है कि शरीर जड़ है, विनश्वर है, मरणधर्मा है, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श वाला है, जबकि आत्मा चेतन है, ज्ञानवान है, अविनाशी है, अमरणशील है, उसमें वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श नहीं होते । शरीर प्रत्यक्ष दिखाई देता है, क्योंकि वह मूर्तिमान है, जबकि आत्मा अमूर्त है, इसलिए प्रत्यक्ष नहीं दिखाई देता । आत्मा के स्वतन्त्र अस्तित्व की सिद्धि मृत शरीर में से चेतना निकल जाने के बाद उसमें कोई ज्ञान अथवा स्वतन्त्र रूप से हलन चलन की शक्ति नहीं होती, उसके शरीर में पाँचों इन्द्रियाँ होते हुए भी वे अपने-अपने विषयों में प्रवृत्त नहीं होतीं । मन भी किसी प्रकार का मनन- चिन्तन नहीं कर पाता । शरीर के किसी अवयव में अपना-अपना कार्य करने की भी शक्ति नहीं रहती । इसका कारण है कि पहले जो इन सब में शक्ति थी, वह आत्मा की शक्ति थी । वह शक्ति अब मृत शरीर में नहीं रही, क्योंकि उसमें से चेतनाशक्तिमान् आत्मा निकल कर अन्यत्र चला गया है । मृत शरीर में पंचभूत रहते हुए भी चैतन्य क्यों नहीं ? पंच महाभूतों अथवा चार भूतों के एकत्र होने से चैतन्य शक्ति उत्पन्न होती है, यह मान्यता भी निराधार है क्योंकि मृत शरीर में पृथ्वी भी रहती है, क्योंकि शरीर पार्थिव कहलाता है, पानी भी रहता है, वायु भी रहती है, शरीर में तेज (गर्मी) भी अमुक समय तक रहती है और आकाश भी रहता है। ये चारों या पाँचों महाभूत उस मृत शरीर में एकत्रित रहते हैं। एक-दूसरे के साथ सम्मिलित रहने पर भी उनमें किसी प्रकार का चैतन्य उस समय प्रकट नहीं होता। अगर मृत शरीर में पाँच या चार महाभूतों के होने पर भी आँख, नाक, कान, जीभ और शरीर, मन, बुद्धि आदि में किसी प्रकार को अपना-अपना कार्य पूर्ववतु करते, किन्तु वैसा नहीं होता चेतना हो तो वे । इसीलिए शरीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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