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२२ | अप्पा सो परमप्पा बेरोकटोक विषय-सुखों में प्रवृत्त करने पर प्रतिबन्ध लग जाएगा। अपनी इच्छानुसार हम इस जिन्दगी का आनन्द नहीं लूट सकेंगे । इससे तो अच्छा है कि हम आत्मा-परमात्मा को ही न मानें, और किसी धर्म-सम्प्रदाय के अनुयायी ही न बनें। इस प्रकार के कई स्वेच्छाचारी लोग भी नास्तिक बन गए। उन्होंने भी आत्मा-परमात्मा का अस्तित्व मानने से इन्कार कर दिया। प्रत्यक्षवादी नास्तिक आत्मा को नहीं मानते थे
कुछ लोग प्रत्यक्षवादी थे। वे कहते थे-आत्मा को तो हम तब मानें, जब वह प्रत्यक्ष दिखाई दे। न आत्मा कहीं जाता दीखता है और न कहीं से आता दीखता है। इस प्रकार मृत्यु के बाद और जन्म से पूर्व कोई आत्मा जाता या आता--यानी निकलता और प्रवेश करता दिखाई नहीं देता, इसलिए हम आत्मा को नहीं मानते । वे लोगों को ललकारते थे कि अगर आत्मा का अस्तित्व है तो मरने के पश्चात् शरीर से निकलते हुए अथवा जन्म से पूर्व शरीर में प्रवेश करते हुए आत्मा को हमें प्रत्यक्ष दिखलाओ। आत्मा को प्रत्यक्ष न बता सकने पर वे लोग स्पष्ट कहते थे कि आत्मा नाम का कोई पदार्थ नहीं है। आत्मा के अस्तित्व के विषय में शंकाशील
तथागत बुद्ध का एक शिष्य था-मालुकापुत्र । उसने तथागत बुद्ध के समक्ष अपनी शंका प्रस्तुत की-"आत्मा है या नहीं ?, मरने के बाद क्या होता है ?, यह विश्व सान्त है या अनन्त ?' बुद्ध ने इन प्रश्नों को टालने की दृष्टि से कहा- "यह जान कर तुम्हें क्या करना है ?" कहते हैं -ये और ऐसे दस प्रश्नों के उत्तर में तथागत बुद्ध मौन रहे । उन्होंने इन्हें अव्याकृत कह कर टाल दिया। इस कारण भी कई लोग आत्मा के अस्तित्व के विषय में शंकाग्रस्त रहे। परन्तु भगवान महावीर ने इन तात्त्विक प्रश्नों का सरल और रोचक शैली में विश्लेषण करके उत्तर दिया है। आत्मा के अस्तित्व के विषय में युक्ति
यह तो हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि समग्र जीवजगत् दो अवस्थाओं में से गुजरता है। वह एक दिन जन्म लेता है, यह एक अवस्था है; तथा एक दिन वह मर जाता है, यह दूसरी अवस्था है। जन्म और मृत्यु की ये दोनों घटनाएं प्रत्यक्ष हैं । परन्तु हजारों वर्षों से यह प्रश्न बार-बार मनुष्य के मन
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