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________________ ३५० / अप्पा सो परमप्पा देर में राजसभा में चारों ओर मुर्गों की आवाज होने लगी। राजा तथा अन्य सभासदों ने कहा-"यह कैसा चित्रकार ? इसने तो हूबहू मुर्गे की-सी आवाज, उसी की-सी चेष्टाएँ अपना ली हैं। राजा ने पूछा-'यह क्या कर रहे हो ? तुम्हें तो मैंने मुर्गे का चित्र बनाने का कहा था, स्वयं मुर्गा बनने का नहीं । मुझे तो मुर्गे का चित्र चाहिए चित्र ।' चित्रकार बोला-मैं तीन वर्ष में क्या करता रहा ? यही बता रहा हूँ। राजन् ! स्वयं मुर्गा बने बिना मैं जीवन्त मुर्गे का चित्र कैसे बना पाता ? राजा-"अब तो तुम हूबहू मुर्गा बन चुके हो, अब जल्दी से चित्र तैयार करो।" चित्रकार ने कहा- "अब तो मैं आध घन्टे में मुर्गे का चित्र बना दूंगा। चित्र बनाने की सामग्री मंगवा दीजिए।" राजा ने तुरन्त कागज, रंग और कूची मंगवा दी। सारी सामग्री आने पर उस चित्रकार ने थोड़ी ही देर में चित्र बना दिया। राजा ने पूछा-"क्या यह जीवन्त मुर्गे का चित्र है ?' चित्रकार बोला- ''जी हाँ, वही है।" राजा- "तो फिर तुम्हारे इस चित्र में और उन चित्रकारों के चित्र में क्या अन्तर है ? तुम्हारा चित्र जीवन्त मुर्गे का है और दूसरे चित्रकारों का नहीं है, यह सिद्ध करके बताओ।" चित्रकार ने एक मुर्गा मंगवाया और पहले उन सभी चित्रकारों द्वारा बनाये हुए चित्र के सामने क्रमशः मुर्गे को छोड़ दिया। मुर्गा प्रत्येक चित्र के सामने गया और मुंह फेरकर वापस लौट आया। सबके चित्र के पश्चात उस चित्रकार ने अपना चित्र रखा । वह मुर्गा उस चित्रित मुर्गे को देखते ही एकदम उस पर झपट पड़ा। बूढ़े चित्रकार ने कहा-"देखिये, महाराज ! मेरे द्वारा चित्रित मुर्गे से यह मुर्गा लड़ने को तत्पर हो गया, क्या यह जीवन्त मुर्गा नहीं है ?" राजा ने साश्चर्य कहा- वाह ! इतनी जल्दी जीवन्त मुर्गा कैसे बना दिया तुमने ?' चित्रकार बोला-महाराज ! मुझे तीन वर्ष तो स्वयं कुक्कुट बनने में लगे हैं। अगर मैं स्वयं मुर्गा न बनता तो मुर्गे का चित्र इतना जीता-जागता नहीं बना पाता। मैं कुक्कुट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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