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परमात्मभाव से भावित आत्मा : परमात्मा | ३५१
भाव से स्वयं भावित होकर ही कुक्कुट का यह जीवन्त चित्र इतना शीघ्र बना सका हूँ ।"
इसलिए "देवो भूत्वा देवं यजेत् " इस उपनिषद् - वाक्य के अनुसार जब तक आत्मार्थी साधक स्वयं परमात्मा (शुद्ध आत्मा) नहीं बनता, तब तक वह परमात्मा नहीं बन सकता । अतः पूर्वोक्त प्रक्रिया के अनुसार अर्हतुपरमात्मा या सिद्धपरमात्मा बनने के लिए आत्मार्थी साधक को परमात्मभावों से भावित होना आवश्यक है । और परमात्मभावों से भावित होने के लिए अपनी आत्मा को परभावों और विभावों के कुचक्र से अथवा सावद्ययोगों से दूर रखना तथा उसे सोते-जागते, उठते-बैठते, यानी प्रत्येक प्रवृत्ति करते समय परमात्मभाव को ध्यान में रखना अनिवार्य है । तभी शुद्ध आत्मा 'अप्पा सो परमप्पा' के सिद्धान्त को क्रियान्वित कर सकेगी ।
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