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२० | अप्पा सो परमप्पा
यद्यपि बाद में पार्श्वनाथ भगवान की परम्परा के सुप्रसिद्ध ज्ञानी केशी कुमार श्रमण के उपदेश से तथा आत्मा के अस्तित्व के सम्बन्ध में अनुमान, तर्क, आगम आदि प्रमाणों और युक्तियों द्वारा समझाने से उसे आत्मा के अस्तित्व का बोध हो गया और पुनर्जन्म, स्वर्ग,नरक आदि को भी मानने लगा। वह धर्मनिष्ठ श्रावक बन गया। उसको आत्मा, जो पहले पापकर्मों से कलुषित हो गई, अब धर्माचरण करने के कारण काफी विशुद्ध हो गई । यद्यपि उसने आत्मा को खोज के लिए पहले जो-जो प्रयोग किये थे, वे स्पृहणीय नहीं थे, किन्तु आत्मा को जानने की तीव्र इच्छा प्रशंसनीय थी, यही कारण है कि आत्मा के अस्तित्व का बोध होने पर प्रदेशी नृप का जीवन पूर्णतः परिवर्तित हो गया था। वह धर्मतत्त्वज्ञ और धर्माचरण-परायण बन गया। आत्मा के अस्तित्व को न मानने वाले
प्राचीन काल में आत्मा के अस्तित्व से साफ इन्कार करने वाले कई लोग हुए हैं । पश्चिम में ऐसे कई वैज्ञानिक भी हुए हैं जो आत्मा-परमात्मा को नहीं मानते थे। उन्होंने देखा कि जो परमात्मा को सारे जगत् का कर्ताधर्ता मानते हैं, उसे ही सारे जगत् का पिता मानते हैं, सारे जगत के प्राणी उसी की संतान हैं, इस दृष्टि से सभी भाई-बन्धु हैं, ऐसा मानकर भी वे विभिन्न धर्म-सम्प्रदायों के लोग परस्पर लड़ते-झगड़ते हैं, एक दूसरे को सताते और मारते-पीटते हैं। जिस धर्म-सम्प्रदाय वाले व्यक्ति के हाथ में राज्यसत्ता आ गई, वह दूसरे धर्म-सम्प्रदाय वालों को घृणा की दृष्टि से देखता है, उन पर कहर बरसाता है। जरा-सा धर्म-सम्प्रदाय के विरुद्ध बोला कि उसे मौत के घाट उतार दिया। जिन वैज्ञानिकों ने भौतिक विज्ञान के नये-नये प्रयोग किये, यदि उनमें से किसी की बात बाइबिल के कथन से विरुद्ध हई तो उसे जिन्दा जला दिया गया। ईसाइयों और मुसलमानों के, रोमन कैथोलिकों और प्रोटेस्टेटों के, तथा ईसाइयों और यहूदियों के लगभग सौ वर्ष तक धर्मयुद्ध (क्रूजेडो) चले। और यूरोप का इतिहास कहता है कि उन धर्मयुद्धों में खून की नदियाँ बह चलीं। उस क्षेत्र की सारी भूमि रक्तरंजित हो गई। यह सब उन्होंने किया, जो सभी मनुष्यों ही नहीं, सभी जीवों को परमात्मा (God)की सन्तान मानते थे। परमात्मा के भक्तों के ये सब काले कारनामे देखकर उन विचारक लोगों को, जिनमें
१. इसकी विस्तृत जानकारी के लिए देखिए राजप्रश्नीय (रायप्पसेणीय) मूत्र ।
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