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________________ २६८ | अप्पा सो परमप्पा के लिए शीर्ष समर्पण है । इसमें आत्म समर्पण में अपने तन, मन, बुद्धि, शक्ति, इन्द्रियाँ, वाणी आदि सबको हृदय से वीतराग प्रभु के चरणों में अर्पित कर देना होता है । 'आज्ञा में ही धर्म है, आज्ञा में ही तप है ।" इन शास्त्र वाक्यों का आशय भी आत्म समर्पण करना है । यह तो हुआ व्यवहारनय से आत्म समर्पण का अर्थ और तात्पर्य । निश्चयनय की दृष्टि से अर्थ होगा -- आत्मा का दर्पण की तरह निर्विकारी निर्मल आत्मा (परमात्मा) में समर्पण करना । चरण का अर्थ चारित्र भी है । इस अपेक्षा से अर्थ होगा - वीतराग- उपदिष्ट कमलवत् निर्लेय विशुद्ध चारित्र में अपनी आत्मा को तल्लीन कर देना । अथवा आत्मा के परमशुद्ध स्वरूप में अपने आपको लीन कर देना । मेघकुमार मुनि द्वारा प्रभुचरणों में आत्मसमर्पण मगध सम्राट् श्र ेणिक विम्बसार का पुत्र मेघकुमार श्रमण भगवान् महावीर के चरणों में परम वैराग्यभाव से दीक्षित हुआ। मुनि बनने की पहली ही रात में अन्धकार में अनेक श्रमणों के पैरों की ठोकर लग जाने से नवदीक्षित मेघकुमार मुनि का मन मुनिजीवन से उद्विदन हो गया और वह इसे छोड़ने को मन में विचार करके प्रभु महावीर के पास आया और भगवान् महावीर ने उसे पूर्व जीवन की ओर इस जीवन की घटनाओं तथा विविध युक्तियों से समझाकर उसे संयम में स्थिर किया । मेघमुनि ने अपनी भूल स्वीकार की । प्रायश्चित्त स्वीकार कर आत्मशुद्धि की, और उसी समय अन्तःकरण से वीतराग परमात्मा महावीर के समक्ष आत्मसमर्पण मुलक प्रतिज्ञा की -- प्रभो ! आज से जीवनपर्यन्त आँख के सिवाय मेरे सभी अंगोपांग तथा मन-बुद्धि- इन्द्रियादि सब आपको समर्पित हैं । ये सब आपकी आज्ञा से बाहर नहीं चलेंगे । "3 यह है - वीतराग परमात्मा के समक्ष आत्मसमर्पण का ज्वलन्त उदाहरण | सन्त कबीर को आत्म समर्पण से ही सन्तोष हुआ सन्त कबीर ने जिन्दगी के अनेक वसन्त आत्मसाधना, प्रभुभक्ति, १ " भक्ति भगवन्त की बहुत बारीक है । शीश सोप्याँ बिना भक्ति नहीं || " २ ' आणाए मामगं धम्मं, आणाएं धम्मो, आणाए तवो' ३ देखिये - ज्ञाता धर्म कथा सूत्र में मेघ मुनि का वर्णन । Jain Education International For Private & Personal Use Only - सन्त कबीर --आचाराँग सूत्र www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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