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________________ - - १५ आत्म-समर्पण से परमात्म-सम्पत्ति की उपलब्धि ये विविध स्वच्छन्दताएँ ही आत्मा से परमात्मा बनने में बाधक 'आत्मा परमात्मा बन जाता है, यह तथ्य कहनेसुनने में जितना सरल है, करने में उतना ही कठिन है। आत्मा तभो परमात्मा बन सकता है, जब वह परभावोंविभावों के प्रति अहंता-ममता से दूर हो, अपनी स्वच्छन्दता और मदमत्तता को रोके, अपनी दीनता-हीनता और पराधीनता पर अंकुश लगाए । अपनी इन्द्रियों, मन, बुद्धि एवं वृत्तियों को उच्छृखलता और आत्मा के प्रति विमुखता या उदासीनता पर नियन्त्रण करे, अपने-आप पर संयम रखे, अपने तन, मन, वचन का स्वेच्छा से दमन (नियमन) करे। परमात्म-प्राप्ति की साधना में मिलने वाली अदृश्य सफलता, आत्मशक्तियों के विकसित होने पर प्राप्त होने वालो प्रशंसा, प्रसिद्धि, वाहवाही, प्रतिष्ठा पदवी आदि से जागने वाले अहंकार के सर्प से दूर रहे। इसीलिए अध्यात्मसाधना के पारदर्शी महापुरुषों का कहना है 'छंदं निरोहेण उवेइ मोक्खं '1. 'साधक स्वच्छन्दता को रोकने पर ही मोक्ष (परमात्मभाव) को प्राप्त कर पाता है ।' १ (क) उत्तराध्ययन सूत्र अ. ४ गा. ८ (ख) आचारांग सूत्र श्रु. १/अ. २/उ. ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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