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________________ २५६ | अप्पा सो परमप्पा नहीं है। एक बैंक का कैशियर बैंक के खजाने में प्रतिदिन लाखों रुपये अपने हाथ से लेता-देता है किन्तु वह उनसे लाभान्वित या आनन्दित नहीं होता, क्योंकि उन रुपयों के साथ उसका भावात्मक सामीप्य नहीं होता। जिस धन से व्यक्ति का भावात्मक समीप्य जुड़ जाता है, उसे वह अपना समझने लगता है। उसमें उसे दिलचस्पी और प्रसन्नता होने लगती है। यह तो हई लौकिक दृष्टि से बात । लोकोत्तर दृष्टि से उपासक परमात्मा के अनन्त ज्ञान-दर्शन-आनन्द-शक्तिरूप सम्पदा को जब अपनी समझने लगता है, अपने उपास्य परमात्मा के साथ भावात्मक सामीप्य जोड़ लेता हैं, तब वह भी एक दिन परमात्म-सम्पदा का स्वामी बन जाता है । परमात्मा की उपासना की पूर्वभूमिका वीतराग-परमात्मा की उपासना के चार क्रम प्रतीत होते हैं-सर्वप्रथम परमात्मा के अस्तित्व और स्वरूप का भान, तदनन्तर उनके प्रति आस्था, फिर उन्हें हृदय में आसन देना और अन्त में उनकी उपासना करना। वर्तमान युग में भौतिकवाद, सुख-सुविधावाद एवं भोगवाद का काला पर्दा अधिकांशः मनुष्यों की बुद्धि पर पड़ने के कारण, लोग नास्तिक बन गये हैं। आसुरी सम्पत्ति का प्रभाव पड़ जाने से भी अधिकांश मानव परमात्मा को मानने से इन्कार कर देते हैं। ___ परमात्मा आत्मा की तरह कोई चर्म चक्षुओं से दिखाई देने वाला पदार्थ नहीं है। इसलिए परमात्मा के असीम ज्ञान, दर्शन, आनन्द और शक्ति को देखकर ही परमात्मा के अस्तित्व को माना जाता है। इन्हें देखने के लिए अपनी आत्मा में ही उपासक परमात्मभाव को तथा परमात्मगुणों को स्वपुरुषार्थ द्वारा जगाता है। इसीलिए जैनदर्शन कहता है--प्रत्येक प्राणी के हृदय में शुद्ध आत्मा का निवास है, और शुद्ध आत्मा ही मूलरूप में परमात्मा है। इस दृष्टि से परमात्मा अत्यन्त निकट है। परन्तु उसकी अभिव्यक्ति उसी हृदय में होती है, जो हृदय निर्मल, पवित्र, निश्छल और निर्विकार हो । जैसा कि सन्त कबीर ने कहा 'घट-घट मेरा सांइया, सूनी सेज न कोय । वा घट की बलहारियाँ, जा घट परगट होय ।।"1 भगवद्गीता में भी यही बात प्रकारान्तर से कही गई है - १ कबीर की साखियाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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