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आत्मा को परमात्मा से जोड़ती है-उपासना | २५१
पर भी वे शरीरादि पर ममत्व छोड़ कर स्वभाव में लीन हो गये और शन्ति से प्रसन्नतापूर्वक नश्वर शरीर की छोड़ा। यह सब प्रभाव उस वीत. राग प्रभु के प्रतिनिधि श्रमण निर्ग्रन्थ की पर्युपासना का सुपरिणाम था। वीतराग प्रभु की हार्दिक उपासना का परिणाम तो इससे भी सुष्ठुतर आता ।
उपासना से आत्मविश्वास में वृद्धि उपासना से हृदय में परमात्मा का निवास और सान्निध्य प्राप्त होता है, जिससे उपासक को अत्यन्त विश्वास प्राप्त हो जाता है कि परमात्मा मेरे हृदय में विराजमान हैं, इसलिए मेरा कोई अहित, या नुकसान नहीं कर सकता, चिन्ता और हृदय में दुर्बलता, झिझक, निरुत्साहता, भीति, सुरक्षा की शंका आदि सब पलायित हो जाती हैं । वह सदैव यही सोचता है कि अनन्तशक्तिमान परमात्मा मेरे हृदय में स्थित है, तो फिर मुझे किससे और क्या भय है ?, क्या संकट या आतंक है ?
उपासना से अलभ्य लाभ परमात्मा की उपासना से उपासक को सबसे बड़ा लाभ यह है कि वह अगर एकाग्रचित्त होकर उपास्य को अपने हृदय में भावात्मक रूप से बिठा लेता है तो उपास्य परमात्मा के अनन्त ज्ञानादि गुण भी उसमें संक्रान्त हो जाते हैं, वह उपासक एक दिन स्वयं परमात्मा बन जाता है। भक्तामर स्तोत्र में इसी तथ्य का प्रतिपादन किया गया है
नाद्भुतं भुवनभूषण ! भूतनाथः । भूतैर्गुणैर्भुवि भवन्तमभिष्टुबन्तः । तुल्या भवन्ति भवतो ननु तेन किं वा,
भूत्याश्रितं य इड् नाम-सनं करोति ?1 अर्थात्-“हे भुवन-भूषण ! प्राणियों के नाथ ! इस में कोई आश्चर्य नहीं है कि इस पृथ्वी पर आपकी अनेक गुणों से स्तुतिमूलक उपासना करने वाले आपके तुल्य--वीतराग परमात्मा बन जाते हैं। उस व्यक्ति की उपासना करने से क्या लाभ, जो विभूति का आश्रय लेने वाले उपासक को अपने समान नहीं बना देता ?"
१ आदिनाथ भक्तामर स्तोत्र , श्लोक १०
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