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आत्मा को परमात्मा से जोड़ती है-उपासना | २४६
ज्ञान-दर्शन-चारित्ररूप या स्वभाव =ज्ञानादि स्वगुण रूप प्रकाश से प्रकाशित रहता है और दूसरों को भी प्रकाशित करता रहता है । उपासना से परमात्मा की समीपता प्राप्त होती है
परमात्मा अनन्तज्ञान, दर्शन, सुख और वोर्यशक्ति के केन्द्र हैं, उनकी समीपता उपासक आत्मार्थी के लिए उतनी ही उपयोगी है, जितनी अत्यन्त ठण्ड से ठिठुरता हुआ व्यक्ति अग्नि की समीपता प्राप्त करना आवश्यक समझता है। रसोई बनाने वाली महिला यदि चावल, दाल आदि खाद्य पदार्थों को चूल्हे की आँच से दूर रखती है, अथवा स्वयं रसोईघर में चूल्हे से दूर बैठती है, तो उसका रसोई बनाने का उद्देश्य पूर्ण नहीं होता, भोजन अच्छा बन नहीं सकता, इसी प्रकार स्वयं को परमात्मतत्व से परिपूर्ण या परिपक्व करना चाहने वाला आत्मार्थी साधक अनन्तज्ञानादिगुणनिधान परमात्मा से दूर रहे, उनके समीप न बैठे, परमात्मतत्वों पर ध्यान न दे, उन्हें आँखों से ओझल कर दे तो वे अनन्तज्ञानादि गुण या तत्व उसे प्राप्त नहीं हो सकते। अतः बुद्धिमान आत्मार्थी उपासक अन्य क्रियाकाण्डों को महत्व न देकर परमात्मा के साथ हार्दिक समीपता को तथा उपासना की भावात्मक प्रक्रिया को अपनाता है।
__उपासना से परमात्मा की सत्संगति और हृदयपरिवर्तन सत्संगति और सान्निध्य से गुणों के आदान-प्रदान की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। परमात्मा का भावात्मक सान्निध्य या सत्संग पाकर पापो से पापी व्यक्ति पुण्यात्मा, धर्मात्मा और परमात्मा तक बन जाता है। गंगा के स्वच्छ जल की संगति पाकर गन्दी नाली का पानी भो स्वच्छ और शुद्ध हो जाता है । चन्दन के वृक्ष के समीप उगे हुए अन्य जंगली पेड़ भी चन्दन की सी सौरभ पा जाते हैं। यह कहावत भी प्रसिद्ध है
"एक घड़ी आधी घड़ो, आधी में पुनि आध ।
'तुलसी' संगति साधु की कट कोटि अपराध ।।" साधुपुरुषों एवं महापुरुषों की संगति से अपराधी व्यक्ति भी अपनी अपराधीवृत्ति को भूलकर सबके साथ प्रेम, वात्सल्य, मैत्री, सहानुभूति, क्षमा, दया आदि आत्मिक सद्गुणों को अपना लेता है। दुरात्मा से महात्मा बन जाता है। गो, ब्राह्मण, नारी और बालक की हत्या करने
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