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२४८ | अप्पा सो परमप्पा
माध्यम है। उपासना से व्यक्ति परमात्मा के सान्निध्य में पहुँचकर परमात्मा के गुणों और शक्तियों को अपने जीवन में आसानी से खींचा जा सकता है। जैसे लोहा पारसमणि का संस्पर्श पाकर सोना बन जाता है, वैसे ही आत्मा परमात्मा का सान्निध्य या स्पर्श अथवा सम्पर्क पाकर सद्गुणों का धनी बन सकता है। शीत के कष्ट से थरथर काँपते हुए व्यक्ति के लिए अग्नि की समीपता उपयोगी होती है, वैसे ही जन्म-जरा मृत्यु-व्याधि आदि संसार के अपार दुःखों से थरथर काँपते एवं भयभीत होते हुए व्यक्ति के लिए वीतराग परमात्मा की समीपता अत्यन्त उपयोगी होती है । उपासना उपासक को उपास्य (वीतराग देव) से जोड़ने वाली है, वह परमात्मा के साथ घनिष्ठ आत्मीयता सम्बन्ध जोड़ती है। परमात्मा के सान्निध्य में प्रतिदिन भावात्मक रूप से बैठने पर सामान्य आत्मा की परमात्मा के साथ मैत्री पक्की होती है, जिससे वह परमात्मा की शक्तियों और निजी गुणों से लाभान्वित हो जाता है । अतएव आत्मार्थी उपासना के माध्यम से परमात्मतत्व के साथ जुड़ा रहना चाहता है। मछली जब तक पानी से जुड़ी रहती है, तब तक वह आनन्द मनाती है, किन्तु जब वह जल से अलग हो जाती है, तब कष्ट पाती है, तड़फती है, वैसे ही आत्मार्थी साधक जब परमात्मतत्व से अलग हो जाता है, या विस्मृत कर देता है, तब उसे भी कष्ट होता है, विपत्तियाँ उसे आ घेरती हैं। एतदर्थ ही एक आचार्य ने कहा है
सम्पद्स्मरणं प्रभोः, विपद्विस्मरणं प्रभोः । प्रनु को स्मरण रखने से आत्मसम्पदा प्राप्त होती है और परमात्मा को विस्मृत कर देने से आधि-व्याधि, उपाधि आदि विविध विपदाएं घेर लेती हैं।
_ 'याद से आबाद, भूल से बर्बा३'-कहावत भी इसी तथ्य का समर्थन करती है । पंखा, मशीन, हीटर, कूलर, बल्ब आदि विविध विद्य त प्रकाशीय उपकरण तभी तक आश्चर्यजनक और उपयोगी कार्य कर सकते हैं, जब तक बिजली से उनका सम्बन्ध (कनेक्शन) कटे नहीं। बिजली से इनका सम्बन्ध कट जाए तो ये केवल प्रदर्शन की वस्तु रह जाते हैं। इन सबको उपयोगिता इसी में है कि ये बिजली के प्रवाह से जुड़े रहें । ठीक इसी प्रकार आत्मार्थी साधक जब तक उपासना के माध्यम से परमात्म तत्व के साथ भावात्मक एकतापूर्वक जुड़ा रहता है, तब तक वह स्वयं आत्मा के
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