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________________ अप्पा सो परमप्पा | ११ कहावत चरितार्थ हो गई । जिस व्यक्ति के पास अभी एक हजार रुपये भी नहीं है, वह कहे कि मैं धनकुबेर अरबपति हैं, यह कथन जैसे हास्यास्पद मालूम होता है, वैसे ही कोई मानव अभी अपूर्ण है, राग-द्वेषादि विकारों से भरा है, विषय - कषायों से घिरा है. संसार की मोह-माया में लिपटा है, वह यह कहे कि मैं सिद्ध-परमात्मा के समान हूँ, मेरी आत्मा और सिद्धपरमात्मा में कोई अन्तर नहीं है । 1 क्या यह आदर्श की बात व्यवहार में क्रियान्वित हो सकती है ? अथवा इस सिद्धान्त को अमल में लाया जा सकता है ? इसका एक समाधान यह है कि जैनदर्शन आशावादी है और निश्चय व्यवहार दोनों दृष्टियों से किसी सत्य या तथ्य को स्वीकार करता है । जैसे एक व्यक्ति भले ही आज अत्यन्त निर्धन हो, परन्तु उसका भाग्य प्रबल हो जाए तो एक दिन वह धन कुबेर भी बन सकता है । एण्ड्रयुज कारनेगी एक दिन अत्यन्त निर्धन था । उसकी माँ लोगों के कपड़े धोकर अपना और अपने पुत्र का निर्वाह करती थी । अत्यन्त निर्धन अवस्था में भी उसकी माँ उसे पढ़ने के लिए स्कूल भेजा करती थी । एक कमीज था, जिसे रात को उसकी माँ धोकर सुखा देती थी और सुबह उसे पहनाकर स्कूल भेजती थी । परन्तु उसका स्वप्न था - "माँ ! मैं एक दिन अत्यन्त धनिक बनूंगा, तब तुम्हें सब तरह से सुखी कर दूंगा ।" और एक दिन उसका वह सपना साकार हुआ। वह अमेरिका का सबसे अधिक धनाढ्य व्यक्ति बन गया । नेपोलियन बोनापार्ट साधारण मानव था, कोई सोच भी नहीं सकता था कि वह एक दिन फ्रांस का सर्वोच्च सत्ताधीश बनेगा । परन्तु नेपोलियन ने उस असम्भव माने जाने वाले कार्य को सम्भव कर दिखाया । निर्धन और अशिक्षित बंगाली पिता का पुत्र ईश्वरचन्द्र अपने अध्यवसाय और पुरुषार्थ के बल पर महान् विद्वान् बना और सबको आश्चर्यचकित कर दिया । भगवान् महावीर के २७ पूर्वजन्मों की जीवनी पढ़कर उस युग में कोई यह सोच भी नहीं सकता होगा कि यह सामान्य-सा दिखाई देने वाला वनविभाग का अधिकारी 'नयसार' किसी जन्म में सामान्य आत्मा से परमात्मा बन जाएगा। परन्तु भगवान महावीर ने 'अप्पा सो परमप्पा' इस १ जो परमप्पा सो जिउहं, जो हउं सो परमप्पु । — योगसार २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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