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________________ २३० | अप्पा सो परमप्पा योग लगाएँ तो उन्हें उस वस्तु के वस्तु-स्वरूप का बोध केवलज्ञानियों के बराबर हो सकता है और केवलज्ञानियों के बराबर उस विषय में निर्णय दे सकते हैं। इसलिए आत्म प्रत्यक्षज्ञानियों के इस युग में अभाव होने से स्वयमेव व्यवहार एवं निश्चय दृष्टि से परमात्ममार्ग पर चलने का पुरुषार्थ करे और अनुभव करे । परमात्मपथ के दर्शन होते ही परमात्म-प्राप्ति सुलभ निश्चय से आत्मस्वभाव या आत्मगुणों में स्थिरतारूप तथा व्यवहार से रत्नत्रय में पुरुषार्थ करते-करते काल परिपक्व हो जाने पर आत्मलब्धि (आत्म-शक्ति) प्रबल हो जाने से साधक वीतराग परमात्मा को स्वयं जान-देख सकेगा। परमात्म पथ के दर्शन होने पर परमात्मा को या परमात्म-भाव को देखने या ट्रॅहने के लिए कहीं अन्यत्र जाने या दूसरे का सहारा लेने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। साधक स्वयं अपनी आत्मा में ही परमात्मा को या परमात्म-भाव को पा सकेगा। यही परमात्मा को जानने, देखने और अनुभव करने का सर्वोत्तम उपाय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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