________________
परमात्मा को कहाँ और कसे देखें ? | २२१ "अल्लाह कहता है कि मैं ऊपर-नीचे, जमीन या आसमान में अथवा फर्श में कहीं नहीं समा सकता, परन्तु मैं विश्वासी भक्तों के हृदय में प्रसनतापूर्वक निवास करता हूँ। जो मुझे ढूढ़ना चाहे, वहीं ढूढ़ ले।" ।
और परमात्मा पर अनन्यश्रद्धा और विश्वास के लिए स्वस्थ, शान्त, एकाग्र एवं निश्चल हृदय में स्थित शुद्ध आत्मा में अडिग आस्था एवं श्रद्धा होनी चाहिए। जो अपने हृदय में केवल परमात्मा के निवास एवं आराधना के लिए स्थान सुरक्षित रखता है, उसमें काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह आदि दुर्विकारों एवं राग-द्वेषादि से युक्त कुविचारों को स्थान नहीं देता, उसी आत्मा को दिव्यदृष्टि प्राप्त होती है, और वह परमात्मा को वहीं जान-देख लेता है, पा लेता है।
परमात्मा को बाहर खोजने वाला : कस्तूरीमृग के समान उस व्यक्ति की मनोदशा कस्तुरीमृग के समान है, जो आत्मा मूढ़ बनकर परमात्मा की खोज के लिए संसार में इधर-उधर मारा-मारा फिरता है । कस्तूरीमृग को नाभि में कस्तूरी होती है, लेकिन वह यह नहीं जानता और कस्तूरी की सुगन्ध की खोज में इधर-उधर दौड़ता-फिरता है। उसे मालूम नहीं कि यह सुगन्ध मेरे शरीर से आ रही है। इसी प्रकार अज्ञानीजन को भी यह विश्वास नहीं कि परमात्मभाव की सुगन्ध मेरी ही आत्मा में है। परमात्मा जब मिलेगा, तब अपने-आप में ही मिलेगा। परमात्माभाव के दर्शन विश्वास से ही होंगे। जैन सिद्धान्त, भगवद्गीता, उपनिषद्, वेदान्त आदि सब एक स्वर से यही बात कहते हैं ।
यह तो हुआ परमात्मा को कहाँ देखे, कहाँ खोजें ? इसका समाधान !
परमात्मा को परमात्मा द्वारा उपदिष्ट मार्ग से जानो-देखो अब प्रश्न यह है कि परमात्मा को कैसे जानें-देखें ? वर्तमान में जो अभी अपूर्ण ज्ञानी हैं, छद्मस्थ हैं, जिनके अनन्तज्ञानादि चतुष्टय अभी तक अभिव्यक्त नहीं हुए हैं। वे वीतराग-परमात्मा (जिन भगवान्) को कैसे जानें-देखें ? गणधर गौतम स्वामी के समक्ष भी यही प्रश्न था, जब श्रमण महावीर परमात्मा ने कहा कि 'गौतम ! तुम्हें आज जिन (वीतराग परमात्मा) दिखते ।" जिन (वीतराग) परमात्मा को तुम कैसे जान: देख सकोगे ? इसके लिए उन्होंने कहा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org