________________
२२० | अप्पा सो परमप्पा मोको कहाँ तू ढूँढ़े, बन्दे ! मैं तो हरदम तेरे पास में ॥ध्र व॥ ना में मन्दिर, ना मैं मस्जिद, ना काशी कैलाश में । ना मैं बहिश्त अब्ज द्वारिका, मेरी भेंट विश्वास में ॥मोको।।१।। ना मैं तीरथ, ना मैं मूरत, ना एकान्त निवास में। ना मैं जप में, ना मैं तप में, ना व्रत में उपवास में ॥मोको०॥२॥ ना मैं क्रियाकाण्ड में रहता, ना हठयोग-संन्यास में । नहीं प्राण में, नहीं पिण्ड में, ना ब्रह्माण्ड-आकाश में ॥मोको॥३॥ ना मैं भ्रकुटि भंवर गुफा में, मैं हूँ श्वासन की श्वास में। खोजी हो तो तुरंत मिल जाऊं, इक पल की ही तलाश में ॥मोको०।।४।।
कहत 'कबीर' सुनो भाई साधो! मैं तो हूँ विश्वास में ॥५॥1 परमात्मा : श्रद्धा और विश्वास में
वस्तुतः भगवद्गीता के अनुसार प्रत्येक प्राणी के हृदय में परमात्मा विद्यमान है । परन्तु वह उसी हृदय में अभिव्यक्त होता है, जो निर्मल, निश्छल एवं पवित्र हो और जिसमें श्रद्धा तथा विश्वास कूट-कूट कर भरा हो। वैदिक धर्म के मूर्धन्य ग्रन्थ भगवद्गीता में भी यही कहा है
ध्यानेनात्मनि पश्यन्ति केचिदात्मानमात्मना ।
अन्ये सांख्येन योगेन कर्मयोगेन चापरे ॥ कई लोग परमपुरुष परमात्मा (शुद्ध आत्मा) को अपनी शुद्ध बुद्धि (आत्मा) से ध्यान के द्वारा, कई ज्ञानयोग (शास्त्रज्ञान) द्वारा और कितने ही व्यक्ति निष्काम कर्मयोग (निष्काम चारित्रपालन या स्वरूपाचरण चारित्र) द्वारा देखते हैं।
वास्तव में जिस व्यक्ति की दिव्यदृष्टि खुल गई है, जिसके हृदय में श्रद्धा और विश्वास ये दो फेफड़े स्वस्थ और कार्यरत हैं, उसे अपनी शुद्ध आत्मा में अनन्त-ज्ञानादि चतुष्टय से सम्पन्न परमात्मा के दर्शन होते हैं ।
'कुरान शरीफ' में भी हजरत मुहम्मद साहब ने बताया है
१ कबीर भजनावली। २ 'ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन ! तिष्ठति ।' -भगवद्गीता अ० १८,श्लो० ६१ ३ भगवद्गीता अ० १३ श्लो० २४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org