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________________ परमात्मा को कहाँ और कैसे देखें ? | २१६ विराजमान आत्मा परमात्मभाव को पाने की शुद्ध दिव्यदृष्टि पाए हुए हैं, उसी को परमात्मा दिखाई देता है।1।। परमात्मा को बाहर ढूँढ़ने की अपेक्षा अन्तरात्मा में ढूंढो अतः परमात्मा को बाहर ढंढ़ने की अपेक्षा अपनी आत्मा में ढूंढनेदेखने और पाने की सलाह सभी ज्ञानी पुरुषों ने दी है। जो लोग परमात्मा को बाहर ढूंढते हैं, उनके लिए कबीर जी कहते हैं ___पानी में मीन पियासी, मोहे देखत आवे हांसी ।'2 'मुझे यह देखकर हँसी आती है कि मछली सागर में प्यासी है।' परमात्मा की तीर्थों आदि में खोज ऐसी ही है, मानो, मछली सागर को खोजती हो। मछली सागर में ही पैदा होती है, सागर में ही जीती है। सागर में ही बढ़ती है, सागर का पानी ही मछली के भीतर लहरें लेता है। अन्त में, वह सागर में ही लीन हो जाती-खो जाती है। अगर वह सागरमयी मछली यह कहे कि मैं प्यासी हूँ, तो किसी को भी सुनकर आश्चर्य होगा। इसी प्रकार प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ तन-मन-बुद्धि का धारक मानव अपनी आत्मा में परमात्मतत्व छिपा हआ रहने पर भी यह कहे कि 'मुझे परमात्मा खोजने पर भी नहीं मिला, परमात्मा मुझे दिखाई नहीं दिया,' क्या यह आश्चर्यजनक बात नहीं होगी ? परमात्मा तो हमारे सामने ही है, हमारे अत्यन्त निकट है, उसके चेहरे (रूप) पर कोई घूघट नहीं है। हमारी ही आँखों पर पर्दा है। वह पर्दा भी हमने स्वयं ही डाला है, जिसके कारण हम उससे अपरिचित होकर उसे बाहर ही बाहर ढूढ़ा है। आँखों पर पर्दा डाले आप कहीं भी घूमते फिरें-काशी या काबा, मक्का या मदीना, जेरुसलम या प्रयाग कोई फर्क न पड़ेगा। आँखों पर से जब तक वह पर्दा नहीं हटेगा, तब तक आप भले ही जन्म-जन्मान्तर तक विभिन्न तीर्थों में घूमते फिरें, परमात्मा नहीं मिलेगा उसके दर्शन दुर्लभ ही होंगे। प्रभुभक्ति का अमर गायक संत कबीर परमात्मा का प्रतिनिधि बनकर साफ-साफ कहता है - १ समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम् । विनश्यत्स्व विनश्यन्तं यः पश्यति स पश्यति । -~भगवद्गीता अ. १३, श्लो.. २७ २ कबीर का रहस्यवाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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