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२२२ | अप्पा सो परमप्पा
"न हु जिणे अज्ज दिस्सइ, बहुमए दिस्सइ मग्गदेसिए। संपइ नेयाउए पहे, समयं गोयम ! मा पमायए ॥1
इसका भावार्थ यह है कि 'गौतम ! अभी तुम श्रुतज्ञानी हो, छद्मस्थ हो, अपूर्ण ज्ञानी हो, इस कारण तुम वास्तविक रूप से अभी जिन (केवली वीतराग) को नहीं देख पाते, क्योंकि केवलज्ञानी ही केवलज्ञानी (सर्वज्ञ वीतराग) को देख-जान सकता है। मैं जो उपदेश दे रहा हूँ, वह केवलज्ञान का होने पर भी तुम्हारे लिए श्रु तज्ञान का ही है, क्योंकि तुम उससे अधिक नहीं जान-देख सकते। इसलिए मेरे कहने से तुम मुझे जिन (वीतराग परमात्मा) मत मानो। अनुमान, आगम आदि प्रमाणों से जिन (वीतराग प्रभु) का मार्ग, जो कि श्रु तज्ञानी को भी दिव्यदृष्टि से दिखाई दे सकता है, देखो और दिव्य दृष्टि से यदि परिपूर्ण, बहुजन सफल, नयप्रमाण से अबाधित पूर्वापर-अविरुद्ध सर्वज्ञ वीतराग परमात्मा के द्वारा उपदिष्ट मार्ग दिखाई दे, तब तो उस मार्ग के उपदेष्टा को भो वीतराग सर्वज्ञ परमात्मा जान लेना चाहिए। इस प्रकार परमात्मा के द्वारा उपदिष्ट मार्ग को जानने-देखने से अनुमानतः परमात्मा को अपनी अन्तरात्मा में ही जानना-देखना हो जाएगा। 'परमात्म-पथ का अर्थ और तात्पर्य
परमात्मपथ को जानने और देखने से पहले यह जानना आवश्यक है कि परमात्म-पथ क्या है ? वह कौन-सा पथ है, जिसे परमात्मा वीतराग प्रभु ने मुमुक्ष एवं आत्मार्थी जीवों के लिए बताया है ? परमात्म-पथ से तात्पर्य है-जिस पथ पर चलकर वीतराग परमात्मा ने मोक्षपद या परमात्मपद प्राप्त किया है तथा परमात्म-प्राप्ति के जिस अनुभूत पथ (मोक्षपथ या स्वभावरमणरूप पथ) का उन्होंने उपदेश-निर्देश किया है, वह पथ। परमात्ममार्ग को समझने में भ्रान्तियाँ
विश्व में जितने भी धर्म, सम्प्रदाय, मत, पंथ हैं, उनके धर्मग्रन्थों या शास्त्रों ने तथा माननीय पुरुषों ने परमात्म-प्राप्ति के अलग-अलग मार्ग बताए हैं । कई बार जिज्ञासु साधक यथार्थ मार्ग को छोड़कर आडम्बर
१ उत्तराध्ययन सूत्र अ० १०, गा० ३१
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