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________________ ८ | अप्पा सो परमप्पा स्व-पुरुषार्थ ही आत्मा से परमात्मा बनने का सन्देश भ० महावीर ने कहा--"अगर तुम्हें समस्त दुःखों से रहित होना है, जन्म-जरा-मृत्यु आदि भयंकर दुःखों से छूटकारा पाना है, इनके बीजरूप कर्मों तथा राग-द्वेष, मोह, कषायादि कर्मों के कारणों से मुक्त होना है, तो स्वयं सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र-तप में पुरुषार्थ करो, तुम स्वयं परमात्मा बन जाओगे, परमात्मा बनने की योग्यता तुम्हारे अन्दर आ जाएगी।" आत्मा से परमात्मा एवं अनाथ से नाथ बनने का रहस्य इस प्रकार 'महावीर' ने स्वयं भी आत्मा से परमात्मा बनने का पुरुषार्थ किया। वे कुटुम्ब-परिवार, घरबार, धन-सम्पत्ति आदि का त्याग करके दुनिया की दृष्टि में अनाथ, प्रभुताहीन एवं दीन लगने लगे, किन्तु वे परमनाथ, आत्मा के नाथ (स्वामी) बन गए । जगत् को भी उन्होंने आत्मा से परमात्मा बनने का सही अर्थ समझाया कि अपनी आत्मा के स्वयं नाथ बन जाना; शरीर, इन्द्रियाँ, मन, सांसारिक इष्ट पदार्थों या मनोज्ञ विषयों को अपने वश में कर लेना, इन्हें जीत लेना तथा अपने आत्मस्वरूप में रमण करना ही परमात्मा बनना है। 'नीत्शे' स्वच्छन्दवाद के नशे में पागल होकर स्वयं अनाथ हो गया, इन्द्रियों आदि का गुलाम बन गया, और संसार को भी अनाथ एवं सांसारिक पदार्थों के गुलाम बनने की प्रेरणा दे गया। वैदिक और जैन परम्परा में भगवान का अर्थ वैदिक धर्म की परम्परा में और जैनधर्म की परम्परा में दोनों में परमात्मा के बदले 'भगवान' शब्द का प्रयोग होता है, किन्तु दोनों धर्मधाराओं में एक ही शब्द का प्रयोग होते हुए भी दोनों की विचारधारा के अनुसार अर्थ अलग-अलग है। वैदिक परम्परा में 'भगवान' का अर्थ हैसृष्टि का कर्ता-हर्ता-धर्ता । जबकि जैन परम्परा में भगवान का अर्थ हैजो राग-द्वषादि विकारों, इन्द्रिय और मन के विषयों तथा जन्म-मरणादि दुःखों के मूल कर्मों की गुलामी से सर्वथा मुक्त हो गया है, जिसने अपने पर प्रभुत्व पा लिया है, जो अनन्तज्ञानादि चतुष्टय का धनी होकर स्वयं कृतकृत्य परमात्मा बन गया है, जो सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होकर जन्म-मरणादि के कीचड़ से भरे संसार में पुनः लौटकर नहीं आता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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