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परमात्मा कैसा है, कैसा नहीं ? | २०३ ये सब बातें ईश्वर के यथार्थ स्वरूप को न समझने के कारण कही/मानी जाती हैं।
ईश्वर के प्रतिनिधि अवतार क्या और कैरो ? ब्राह्मण संस्कृति में पौराणिक सनातनधर्मी यह भी कहा करते हैं कि ईश्वर स्वयं किसी दुर्जन या सज्जन, पापात्मा और पुण्यात्मा, दुष्ट और शिष्ट को उसके कृतकर्म का शुभ या अशुभफल भुगवाने नहीं आता। वैदिक धर्मानुसार वह किसी अवतार (भगवान), इसाई धर्म के अनुसार मसीहा (Prophet), इस्लाम के अनुसार पैगम्बर या नबी को इस संसार में भेजता है । कुछ का कहना है-ईश्वर स्वयं भगवान अवतार आदि के रूप में संसार में अवतरित होता है-जन्म ग्रहण करता है जैसा कि भगवद्गीता में कहा गया है
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ! अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम् ।। परित्राणाय साधूनां, विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय, सम्भवामि युगे-युगे ।।" "हे अर्जुन ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की उन्नति होने लगती है, तब-तब ही मैं अपने रूप (प्रतिनिधि = अवतार के रूप ) को रचता हूँ, अर्थात् प्रकट करता है। वस्तुतः मैं सज्जन पुरुषों की रक्षा और दुष्ट कर्मियों के विनाश के लिए तथा धर्म की स्थापना के लिए युगयुग में प्रकट (सगुणरूप में उत्पन्न) होता हूँ।"
यह है अवतारवाद की गूल भावना । ब्राह्मण संस्कृति तथा इसी के सदृश ईश्वर को सृष्टिकर्ता मानने वाले कुछ धर्म-सम्प्रदाय अवतारवाद को मानते हैं। उनकी मान्यता है कि पृथ्वी से पापों का भार उतारने के लिए समय-समय पर ईश्वर विभिन्न रूपों में जन्म ग्रहण करता है। संसार में राम, कृष्ण आदि जो भी महान् पुरुष हुए हैं, उन्हें ब्राह्मण संस्कृति में ईश्वर का अवतार या भगवान् माना गया है ।
वे मूल में ही भगवान् थे अवतारवाद की यह भी मान्यता है कि विश्व में जितने भी परोपकारी, कर्मठ, वीर, बलिदानी एवं महान् व्यक्ति हुए हैं, वे सब मनुष्य में
१ भगवद्गीता अ. ४, श्लो. ७-८
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