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अप्पा सो परमप्पा | ५
परमात्मा बनने की-मोक्ष प्राप्त करने का पुरुषार्थ करने की, रत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग की साधना करने की प्रेरणा जगी, और हम भी एक दिन अपने से पूर्व हए सिद्ध-परमात्मा की तरह समस्त कर्मों का क्षय करके, राग-द्वेष मोहादि तथा विषय-कषाय आदि विकारों का कुचक्र समाप्त करके और जन्म-मरण का चक्कर मिटाकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त परमात्मा बने । तुम भी हमारी तरह पुरुषार्थ करो तो तुम भो परमात्मा बन सकते हो।
भगवान महावीर और नीत्शे के एकेश्वरवाद-निषेध में अन्तर श्रमण शिरोमणि भगवान् महावीर ने सिद्ध -बुद्ध-मुक्त परमात्मा को प्रेरक, मार्गदर्शक तथा निमित्त के रूप में अवश्य माना, उनके प्रति विनय, बहमान, श्रद्धा-भक्ति, कृतज्ञता भी प्रकट की, किन्तु किसी परमात्मा, अवतार या किसी देवी, देव, दिव्यशक्ति आदि से हाथ पकड़कर तारने की, स्वयं साधना में पुरुषार्थ किये बिना हो किसो के वरदान से तिर जाने को' पापमाफी कर देने की अथवा प्रत्यक्ष सहायता कर देने की बात से इन्कार कर दिया । अर्थात् इस प्रकार का परमात्मा मानने से उन्होंने इन्कार कर दिया जो सारे जगत का कर्ता-धर्ता-हर्ता हो, जिसके वरदान से, स्वयं पुरुषार्थ किये बिना ही दूसरा व्यक्ति परमात्मा बन सकता हो, जो पापमाफी कर देता हो, जो 'कर्तु मकर्तु मन्यथाकतुं समर्थ' हो, जीवों को कर्म करवाता और कर्मफल भुगवाता हो। अथवा एक हो ईश्वर हो, अन्य कोई ईश्वर न बन सकता हो।
पश्चिम के महान दार्शनिक नीत्शे ने भी परमात्मा को मानने से इन्कार कर दिया। उसने कहा कि परमात्मा रहेगा तो मनुष्य पूर्ण स्वतन्त्र नहीं हो सकेगा। मनुष्य के ऊपर परमात्मा रहेगा, तो वह उसके अधीन होकर रहेगा, मनुष्य उसका कृपापात्र बनने का प्रयत्न करेगा, वह उसे येनकेन-प्रकारेण खुश करने की कोशिश करेगा। स्वयं ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप में पुरुषार्थ नहीं करेगा। स्वयं अपना दायित्व कुछ नहीं समझेगा। इसीलिए नीत्शे ने कहा
"God is dead and now man is free to do what-so-ever he wants to do."
ईश्वर (परमात्मा) मर गया अब मनुष्य जो कुछ करना चाहता है, करने के लिए स्वतन्त्र है।'
कुछ लोग कहते हैं कि भ० महावीर द्वारा तथाकथित परमात्मा के
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