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________________ १७६ | अप्पा सो परमप्पा दशा को प्रगट करने में सहायक हैं, उनके माध्यम से साधना करनी है। व्रत-नियम सामायिक आदि साधनों का अपलाप करके उन्हें छोड़ देने से तो संसार ही बढ़ेगा, मोक्ष या परमात्मपद तो उससे दूरातिदूर होता जाएगा। अतः निश्चय को यथार्थ रूप से जानकर व्यवहार का आचरण जरूरी है। केवल निश्चय को जानकर सद्व्यवहार को छोड़ देना भी भूल है और निश्चय का लक्ष्य न रखकर केवल व्यवहार करते रहना भी लक्ष्य तक पहुंचे बिना व्यवहार को छोड़ना खतरनाक हाँ, निश्चय के लक्ष्य तक पहुँचे हुए जीव के अमुक साधन सहज ही छूट जाएँ तो कोई हानि नहीं, क्योंकि उसने लक्ष्य को सिद्ध कर लिया है। उसका जीवन सहज तप-त्याग-संयममय हो जाता है। परन्तु जो निश्चय के लक्ष्य तक पहुँचा नहीं है, वह सद्व्यवहाररूप साधनों को छोड़ देता है, तो उभयभ्रष्ट होकर पतन के मार्ग पर चढ़ जाता है। एकान्त निश्चयनयवादी यदि ट्रेन के साधन से बम्बई जा रहा हो, उसे बम्बई पहुँचना है, किन्तु बीच में उस साधन को त्याज्य समझकर छोड़ दे और जंगल में ही ट्रेन से कूद पड़े तो उसकी कैसी दशा होगी? यही बात आध्यात्मिक साधना के क्षेत्र में समझनी चाहिए। तीर्थंकर आदि कई महापुरुष भी अध्यात्मसाधना के क्षेत्र में जब तक निश्चय के लक्ष्य तक नहीं पहुँचे, तब तक उनका व्यवहार नहीं छटा। चौबीस तीर्थंकरों में कई तीर्थंकरों को दो-तीन या चार महीने के पश्चात् केवलज्ञान हुआ है। वे जानते ही थे कि अमुक समय में हमें केवलज्ञान होगा। फिर भी उन्होंने घर-बार छोड़कर दीक्षा ली, महाव्रतों का पालन किया, पंचमुष्टि लोच किया, भिक्षाचरी, विहार आदि चर्याओं का पालन किया। उन्होंने एक भी व्यवहार का अपलाप नहीं किया । तब फिर छद्मस्थ अल्पज्ञानी जीव निश्चयनय की बातें सुनकर, मैं शुद्ध-बुद्ध हूँ, ऐसा एकान्त समझे और व्रत, नियम, संयम आदि कर्ममल-क्षयकारी साधनों को अनावश्यक समझकर छोड़ दे यह कहाँ तक उचित है ? आत्मार्थी द्वारा निश्चय-व्यवहार दोनों का यथार्थ उपयोग आत्मार्थी यह जानता-मानता है कि परमात्मप्राप्ति या मोक्षप्राप्ति की दिशा में प्रगति करनी हो तो उसे निश्चय और व्यवहार दोनों का अपनी-अपनी भूमिका के अनुसार आदर करना चाहिए। दोनों में से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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