SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७४ | अप्पा सो परमप्पा सद्गुणों की साधना आदि साधन है । इन साधनों से साध्य प्राप्त किया जाता है । साध्य मुक्ति या परमात्मपदप्राप्ति है । इन साधनों से ज्योंज्यों विवेकपूर्वक साधना होती जाएगी, त्यों-त्यों उत्तरोत्तर आत्मा शुद्ध होता जाएगा । और पूर्ण शुद्ध आत्मा परमात्म स्वरूप हो जाएगा । इन साधनों को नहीं समझकर कई व्यक्ति एकान्त निश्चयनयाग्रही बन जाते है, वे साधनविहीन होकर भ्रमवश भटकते रहते हैं । आत्मार्थी के लिए आत्मसिद्धि में कहा है- निश्चय वाणी सांभली, साधन तजवा नोय । निश्चय राखी लक्ष्यमां, साधन करवां सोय ॥ नय निश्चय एकान्तथी, आमां नथो कहेल । एकान्ते व्यवहार नहि, बन्न े साथ रहेल ||1 निश्चयनय के रहस्य से अनभिज्ञ: पतन के गर्त में कई लोग निश्चयनय के कथनों की अपेक्षा और रहस्य समझे बिना केवल उसके अक्षरों को हठाग्रहपूर्वक पकड़े रहते हैं । वे जीवन में संयम, नियम, तप, त्याग, व्रत- महाव्रत आदि साधनों की उपेक्षा करके इनमें पुरुषार्थ को अनावश्यक समझकर, सच्चे साधनामार्ग से दूर हट जाते हैं । कई लोग तो तथाकथित निश्चयनय के अभ्यासी निश्चयनय को स्वयं उलटा समझते हैं, और दूसरों को भी उलटा समझाने लगते हैं कि व्रत, नियम, त्याग, तप, सामायिक आदि तो आश्रव के कारण | जो लोग विधिपूर्वक एवं विवेकसहित सामायिक करते हैं, उन्हें भी ऐसे लोग असंस्कारी वाणी द्वारा कह देते हैं " धूल पड़ी तुम्हारी सामायिक में अथवा सामायिक तो शुभ आश्रव है, वह छोड़ने योग्य है ।" उनसे पूछा जाए कि सामायिक या व्रत, नियम आदि आश्रव के कारण हैं तो अव्रत और स्वच्छन्द विसके कारण है ? क्या वे संवर के कारण हैं ? व्रत, नियम, सामायिक आदि विधिवत् यथार्थ रूप से विवेकपूर्वक हों, तो वे संवर के कारण ही होते हैं । इनमें अव्रत का आश्रव रुकता है और व्रत रूप संवर १ आत्मसिद्धि गा. १३१-१३२ २ अथदा निश्चयनय ग्रहे, मात्र शब्दनी मांय । लोपे सद्व्यवहारने, साधनरहित थाय "1 Jain Education International For Private & Personal Use Only - आत्मसिद्धि गा० २६ www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy