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परमात्मा बनने की योग्यता किसमें ? | १४१
जो व्यक्ति शरीर को ही आत्मा मानता है, और यह कहता है कि पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश, इन पाँच भूतों के संयोग से शरीर बनता है, और वही आत्मा है। आत्मा को शरीरादि से पृथक न मान कर जो शरीर को ही सब कुछ मानता है जो यह कहता है कि शरीर को जला देने पर जब वह राख हो जाता है, तो जात्मा भी समाप्त हो जाती है, शरीर से पृथक् आत्मा नाम की कोई चीज नहीं है, न ही शरीर के राख होने पर आत्मा पुनः लौट कर आता है, वह भी बहिरात्मा है।
इसके अतिरिक्त वह व्यक्ति भी बहिरात्मा है, जो अनित्य शरीर को शाश्वत समझता है और यह मानता है कि शरीर मेरा है, मैं इसका हूँ। इसलिए शरीर और शरीर से सम्बद्ध वस्तुओं की रक्षा, वृद्धि और पुष्टि के लिए दुनिया भर के उखाड़-पछाड़ में लगा रहता है। शरीर के लिए जरा सा भोजन चाहिए, किन्तु वह उत्तम से उत्तम स्वादिष्ट और पौष्टिक वस्तुओं को जुटायेगा। शरीर के लिए ही अपना जीवन समझेगा। जीवन टिकाने और धर्मपालन करने के लिए भोजन है, यह न समझकर वह भोजन के लिए ही जीवन है, इस प्रकार समझता है। शरीर को सुन्दर बनाने के लए शृंगार-प्रसाधन जुटायेगा, पाउडर, क्रीम, तेल-फुलेल आदि पदार्थों को आसक्तिपूर्वक लगाएगा।
शरीर को लज्जा-निवारण एवं सर्दी-गर्मी से रक्षण के लिए वस्त्रों का उपयोग करना फिर भी क्षम्य है, परन्तु शरीरमोही बहिरात्मा मानव बारीक, कोमल, चमकीले, भड़कीले वस्त्रों को अपनाता है, इसलिए कि वह सुन्दर लगे, उसकी शोभा बढ़े। शरीर के रहने के लिए साधारण सादासीधा मकान चाहिए, परन्तु बहिरात्मा एक नहीं, अनेक आलीशान बंगले, अद्यतन फैशन के कई मंजिले मकान बनाएगा, उन्हें अद्यतन साधनों से सुसज्जित करके रखेगा । इस प्रकार शरीर और शरीर से सम्बन्धित समस्त पदार्थों पर वह 'मैं' और 'मेरे पन' की छाप लगाएगा। उसकी रक्षा के लिए प्रचुर धन और साधन जुटाएगा। अहर्निश संसार के राग-रंग, मोहममत्व और भोगविलासों में ड्बा रहेगा । शरीर ही मैं हैं । शरीर का नाश ही आत्मा का नाश है और शरीर का जन्म ही आत्मा का जन्म है, इस प्रकार आत्मा और शरीर को पृथक्-पृथक् नहीं मानता। पृथक् समझता हुआ भी बहिरात्मदशा का त्याग नहीं कर पाता। अपनी समस्त प्रवृत्तियों
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