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________________ परमात्मा बनने का दायित्व : आत्मा पर | १२५ आप स्वयं विचार कीजिए कि जो दूसरों को सुखी करने की चेष्टा में लगा है, दूसरों को धन, साधन या वैषयिक सुख-सामग्री देकर सुखी करने का दावा करता है, क्या सही माने में वह दूसरों को सुखी कर पाता एक पति अपनी पत्नी को सुखी करने की चेष्टा में लगता है। वैषयिक सूख के सभी साधन वह उसके पास जुटा देता है। क्या इतने से वह (पत्नी) सुखी हो गई ? क्या उसे क्रोध नहीं आता ? क्या वह दूसरों से ईर्ष्या नहीं करती ? क्या वह अपने बालकों की चिन्ता में बार-बार सूखती नहीं ? क्या उसे कभी बीमारी, बुढ़ापा तथा अन्य आकस्मिक संकट, प्राकृतिक विपदाएँ आदि नहीं घेरतीं? क्या रसके दिमाग में अपने परिवार, समाज, जाति, राष्ट्र, सम्प्रदाय आदि की समस्याएँ, चक्कर नहीं काटती ? सच है, कोई किसी को सुखी या दुःखी नहीं कर सकता, न ही कोई सुखी या दुःखी करने का दावा कर सकता है। आज संसार में दूसरों को सूखी करने का दावा तो प्रायः सभी वर्ग के लोग कर रहे हैं, पर क्या कोई किसी को सुखी कर पाया है ? राजनेता राष्ट्र या राज्य को सुखी करने का नारा लगाते हैं, समाजनेता समाज को सुखी करने का दावा करते हैं, धमसम्प्रदाय के नायक जनता को सुख-सम्पन्न करने का प्रयत्न करते हैं। परन्तु राष्ट्र की जनता, समाज या साम्प्रदायिक जनों से पूछा जाए कि क्या वे अपने-अपने नेताओं द्वारा सूखी कर दिए गए हैं ? उन सबका प्रायः यही उत्तर होगा "एकस्य दुःखस्य न यावदन्तं, तावद् द्वितीयं समुपस्थितं मे ।"2 “एक दुःख का अन्त नहीं आया, तव तक दूसरा दुःख उपस्थित होकर सामने खड़ा है।" निष्कर्ष यह है कि कोई दूसरा किसी को सुखी नहीं कर सकता, जब तक कि व्यक्ति वास्तविक आत्मिक सूख के लिए तथा दुःखों के वास्तविक कारणों का पता लगाकर उन्हें दूर करने के लिए स्वयं प्रयत्न नहीं करता । भगवान् महावीर से जब यह पूछा गया कि क्या कोई व्यक्ति या स्वयं परमात्मा किसी को सुख या दुःख देता है या दे सकता है ? तब उन्होंने आत्म-परायण दृष्टि से बताया १ उत्तरा. ३/२० गा. २५-२६, 'न य दुक्खा विमोयंति एसा मज्झ अणाया।' २ हितोपदेश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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