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________________ १२६ / अप्पा सो परमप्पा 'अप्पा कत्ता विकत्ता य दुहाण य सुहाण य ।'1 आत्मा ही सुखों और दुःखों का कर्ता और विकर्ता भोक्ता है, दूसरा कोई नहीं। दुःख के लिए भी व्यक्ति स्वयं ही जिम्मेवार __ अधिकांश लोग सुख का श्रेय तो स्वयं लेने को तैयार हो जाते हैं, किन्तु दुःख का दायित्व दूसरों पर डाल देते हैं। वे अपने मुंह से अपना बखान करने लगते हैं कि हमने सुख के साधन जुटाये, अमुक-अमुक को सुखी किया, परन्तु स्वयं दुःखी होते हैं, तब उसके जिम्मेवार स्वय को न मानकर, दूसरों को ठहराते हैं। अमुक ने ऐसा किया, इसलिए हम दुःखी हो गये । पिता दुःखी होता है तो सोचता है, पूत्रों ने दुःखी कर दिया। माता दुःखी होती है तो सोचती है, बहुओं ने दुःखी कर दिया। पति दुःखी होता है, तो उसके लिए पत्नी को जिम्मेवार बताता है, और पत्नी दुःखी होती है तो पति को दुःखी करने वाला बताती है। ये सब यह तो मान ही नहीं सकते कि मैं ही अपने को दुःखी कर रहा हूँ या मेरे द्वारा कृत अशुभ कर्म ही इस दुःख के कारण है, मैंने ही दुःख के बीज बोये थे, उसी का फल मुझे मिल रहा है। इस दुःख के लिए मैं स्वयं ही जिम्मेवार हैं । तत्व से अनभिज्ञ मनुष्य जब दुःखी होता है तो सोचता है कि कोई न कोई मुझे दुःखी कर रहा होगा। वह अवश्य ही किसी न किसी पर दुःख देने का दोषारोपण कर देता है। क्या मैं कभी स्वयं दुःखी हो सकता है ? यदि कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं मिल पाता है तो मनुष्य अप्रत्यक्ष कारणों पर अपने दुःख एवं संकट का सेहरा बाँध देता है । कोई अपनी जाति या समाज को दुःख के लिए दोषी ठहराता है, कोई अर्थव्यवस्था को उत्तरदायी बताता है तो कोई राज्य की नीति-रीति को कोसता है । अगर इन या ऐसा ही कोई निमित्त नहीं मिलता तो मनुष्य भाग्य, विधाता, दैव, भगवान् या किसी शक्ति को दोष देता है । साफ है कि वह 'अप्पणा सच्चमेसेज्जा' की भगवद प्ररूपित नीति-रीति को नहीं अपनाता। अपने आपके अन्दर में निरीक्षण-परीक्षण करके दुःख के वास्तविक कारण को-सच्चाई को नहीं ढूंढता। एक व्यक्ति का पुत्र बीमार था। काफी इलाज कराया गया, परन्तु १ उत्तराध्ययन सूत्र अ. २० गा. ३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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