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परमात्मा बनने का दायित्त्व : आत्मा पर
आत्मा और परमात्मा में मूलभूत कोई अन्तर नहीं
जैनदर्शन का यह मूलभूत सिद्धान्त है-'अप्पा सो परमप्पा' ---जो आत्मा है, वही परमात्मा है। दोनों का स्वभाव एक-सा है, दोनों के गुणधर्म एक समान हैं। दोनों की जाति भी समान है। आत्मा और परमात्मा में मूलभूत कोई अन्तर नहीं है। ये दोनों एक ही चैतन्य के दो रूप हैं । एक ही स्वभाव के दो संघट हैं।
आत्मा पर ही सारा दायित्व भगवान् महावीर के चिन्तन का सारा आधार आत्मा था। प्रत्येक प्राणी का आत्मा ही सर्वस्व है। वह उसे अच्छा बनाये या बुरा बनाये, सारा दारोमदार उसी पर है।
अपनी आत्मा के अतिरिक्त जितने भी जीव हैं, या जितने भी इष्ट या अनिष्ट पदार्थ हैं, उनका कोई गुल्य नहीं है। वे अपनी आत्मा का अच्छा या बुरा कुछ भी नहीं कर सकते। यहां तक कि परमात्मा भी या कोई देवी-देव या शक्ति भी अपनी आत्मा का कुछ बिगाड़ या सुधार नहीं कर सकती । अपना हित, अपना मंगल, अपना
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