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________________ प्रकाशककेबोल जैन धर्म में श्रद्धा की प्रमुखता है। बिना श्रद्धा के साधना विराधना बन जाती है। श्रद्धा शिव है और अश्रद्धा शव है | भगवान महावीर ने श्रद्धा को परम दुर्लभ कहा है । मानव जोवन, शास्त्र श्रवण और पुरुषार्थं - ये तीनों दुर्लभ हैं, पर श्रद्धा अति दुर्लभ है । आधुनिक युग में तर्क की प्रधानता है। तर्क की उपज मस्तिष्क से है और श्रद्धा की उपज हृदय से है। तर्क बुद्धि को प्रभावित करता है और श्रद्धा हृदय को । बिना श्रद्धा के तर्क केवल बौद्धिक कसरत है । कटी हुई पतंग की तरह वह अनन्त गगन में उड़ती तो है, पर श्रद्धा की डोर के अभाव में उस तर्क का शीघ्र पतन हो जाता है। धर्म का सम्बन्ध तर्क की अपेक्षा श्रद्धा से अधिक है । जिज्ञासा में भी तर्क की प्रधानता होती है, पर उस तर्क का सम्बन्ध सत्य तथ्य को प्राप्त करना है, पर जिगीसु के तर्क में जिज्ञासा की प्रधानता नहीं होती, किन्तु जीतने की प्रबल लालसा होती है, इसलिए वह वाक् छल आदि का भी प्रयोग करता है पर जिज्ञासा में इस प्रकार वाक् छल आदि नहीं होता । जिज्ञासा को दर्शन की जननी माना है । भौतिकवाद की चकाचौंध में भूले और बिसरे व्यक्ति जो कमनीय कल्पना के गगन में विहरण करना चाहते हैं और भौतिक सुख-सुविधा को अपनाने के लिए ललक रहे हैं, वे "पन्ना समिक्खए धम्मं " आगम वाक्य की दुहाई देकर जन-मानस को भ्रमित कर रहे हैं । ऐसी विकट बेला में श्रद्धेय उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी ने "सद्धा परम दुल्लहा " ग्रन्थ का निर्माण कर प्रबुद्ध पाठकों को श्रद्धा की महिमा बताने का प्रयास किया है । हमें पूर्ण आत्म-विश्वास है कि प्रस्तुत ग्रन्थ हमारे पूर्व प्रकाशनों की तरह ही लोकप्रिय होगा । जिन दानी महानुभावों ने उदारता के साथ अनुदान दिया है उन सबका हम आभार मानते हैं । Jain Education International - चुन्नीलाल धर्मावत कोषाध्यक्ष श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय, उदयपुर ( ५ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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