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मानव-सेवा की उदात्त भावना से अभिभूत होकर अपने पिता श्रा उधमसिंहजी के नाम पर आपने चेरिटेबल ट्रस्टों को स्थापना की है। इन्होन चरखी, दादरी (डिस्ट्रिक्ट भिवानी हरियाणा) में एक होस्पिटल बनवाया है जिसमें गायनाकोलोजी का अलग वार्ड तथा ओरथोपेडिक की भी व्यवस्था है, ५० बैडों वाले इस हास्पिटल में आँखों की चिकित्सा तथा आपरेशन भी होते हैं। आप में मानव सेवा तथा समाज उन्नति की विशेष भावना है।
आप जितने उदार धार्मिक हैं, उतने ही सफल व्यवसायी भी हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त कर आपने २५ वर्ष की आयु में व्यापार में प्रवेश किया। आपने जैन टयूब कंपनी के नाम से स्टील पाइपों का निर्माण कार्य प्रारम्भ करके देश की एक महती आवश्यकता की पूर्ति की और देश का विदेशी मुद्रा को बचाया; क्योंकि इससे पहले ये टयूब विदेशों से आयात किये जाते थे । कम्पनी का व्यवसाय १६६५-६६ में सिर्फ ५४ लाख था जो १९८५-८६ में बढ़कर ५०८४ लाख हो चुका है। यह आपकी व्यावसायिक कुशलता तथा सफलता का स्पष्ट प्रमाण है। ___आप इंजीनियरिंग, कैमीकल; टेक्सटाइल और कागज उद्योगों से भी सम्बन्धित रहे हैं। आप जैन ग्रुप ऑफ कम्पनीज के साथ १९६३ से सम्बन्धित रहे हैं। इस कम्पनी ने उत्तर-प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में अनेक औद्योगिक यूनिटों की स्थापना की है। आप १९७६-७७ में इन्जीनियरिंग एक्सपोर्ट प्रमोशन काउन्सिल आफ ईन्डिया के उपाध्यक्ष और स्टील ट्यूब डिवीजन के अध्ययक्ष भी रहे हैं।
सम्प्रति आप जैन ट्यूब कम्पनी लिमिटेड के मैनेजिंग डाइरेक्टर और अन्य कम्पनियों के डाइरेक्टर हैं।
आपने प्रस्तुत पुस्तक 'सद्धा परम दुल्लहा' के प्रकाशन में उदार अर्थ सहयोग देकर अपनी धर्मानुरागिता और उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनि के प्रति हार्दिक श्रद्धा प्रगट की है।
इस साहित्यिक अभिरुचि के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
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