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४४ | सद्धा परम दुल्लहा और अतत्वविषयक पदार्थों के प्रति अयथार्थ श्रद्धा भी। पहला सर्वथा मूढदशा (निगोद आदि जीवों) में होता है, जबकि दूसरा वैचारिकदशा में भ्रान्त मान्यता, एवं मताभिनिवेश के कारण होता है। इसी कारण सम्यकश्रद्धा के लिए तत्वभूत पदार्थों के प्रति आत्मलक्ष्यी निश्चयरूप श्रद्धान आवश्यक बताया गया है।
इसके अतिरिक्त इन जिनोक्त नो या सात तत्वों के प्रति प्रतीति या निष्ठा भी तभी मानी जा सकती है, जब जीव, अजीव आदि जिस तत्व का जैसा स्वरूप है, जैसा लक्षण वीतराग प्रभु ने बताया है उसे उसी रूप में माने, उसी रूप में उस पर दृढ़ और अविचल श्रद्धा करे। यही सम्यक् श्रद्धा का वास्तविक स्वरूप है। तत्त्वार्थश्रद्धात्मक सम्यग्दर्शन का विश्लेषण
व्यवहार सम्यग्दर्शन के सन्दर्भ में सम्यश्रद्धात्मक सम्यग्दर्शन का प्रथम लक्षण तत्वार्थसूत्र में इस प्रकार दिया गया है:
तत्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् इसका भावार्थ यह है कि (अपने अपने स्वभाव में स्थित एवं जिनोक्त) जीव अजीव आदि तत्वभूत पदार्थों पर श्रद्धा करना (सम्यक्श्रद्धा रूप) सम्यग्दर्शन है। इसी लक्षण का स्पष्टीकरण करते हुए तत्वार्थ सूत्र के भाष्यकार कहते हैं
"तत्वानामर्थानां श्रद्धानं तत्वेन वाऽर्थानां तत्वार्थश्रद्धानं तत् सम्यग्दर्शनम् । तत्वेन भावतो निश्चितमित्यर्थः तत्वानि जीवादीनि त एव चार्थास्तेषां श्रद्धानं तेषु प्रत्ययावधारणम् ।
अर्थात्-तत्वरूप पदार्थों का श्रद्धान=निश्चय अथवा तत्वरूप से-- यथार्थरूप से अर्थों--पदार्थों का जो श्रद्धान है वही सम्यग्दर्शन है । अर्थात् तत्व से यानी भाव से (शुद्ध हृदय से) या जो पदार्थ जैसा है, उसी रूप से उसका निश्चय करना । जीव, अजीव, पुण्य पाप, आश्रव संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष, ये नौ जिनोक्त तत्व हैं वे ही तत्वभूत पदार्थ हैं उनके प्रति श्रद्धा करना अर्थात्-प्रतीतिपूर्वक निश्चय करना तत्वार्थश्रद्धान है।
१. श्रद्धानं विपरीताभिनिवेशविविक्तम् । २. तत्वार्थ भाष्य अ. १, सू. २॥
-पुरुषार्थ सिद्ध युपाय श्लोक, २२
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