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आस्तिक्य का चतुर्थ आधार : क्रियावाद | २८६ लोगों को अन्तिम समय में यह संशय होने लगता है कि "मैंने कई बार सुना है कि नरक है, जहाँ पापकर्मों, दुराचारी, क्रूर एवं अत्याचारी लोगों को उनके किये हुए दुष्कर्मों के फलस्वरूप नरक में प्रगाढ़ वेदना सहनी पड़ती है। कहीं यह सच तो नहीं है ? यह सत्य हो तो मेरी बहुत दुर्दशा होगी।" अतः क्रियावादी आस्तिक सभी जीवों के साथ आत्मौपम्य व्यवहार करने का ध्यान रखता है।
माता-पिता का अस्तित्व-क्रियावादी माता-पिता के अस्तित्व को मानते हैं । कोई कह सकता है कि माता-पिता के अस्तित्व को मानने और सिद्ध करने की क्या आवश्यकता है ? कई लोगों का मत है कि माता-पिता के बिना भी जीवों का जन्म हो सकता है। तथा माता-पिता का उपकार मानने और उन्हें महत्त्व देने की क्या आवश्यकता है ? उनका हम पर कौनसा उपकार है ? ईसाई लोग ईसा का जन्म कुवारी कन्या से, पुराने वैष्णव लोग सीता का जन्म एक घड़े से मानते हैं, लव-कुश की उत्पत्ति भी कई लोग बिना मां-बाप के मानते हैं । ये सब बातें मिथ्यात्वपूर्ण एवं असम्यक हैं। माता-पिता का अस्तित्व मानना और उनके उपकार के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना, उनकी सेवा करना, उन्हें धर्म-सम्मुख करना, संतान का प्रधान कर्तव्य है। माता-पिता का अस्तित्व मानने से सृष्टि का अनादित्व सिद्ध होता है, और ईश्वरकर्तृत्ववाद का खण्डन हो जाता है।
ऋषियों का अस्तित्व-- क्रियावादी जनसाधरण के जीवन स्तर से उच्च जीवन वाले, गार्हस्थ्य-प्रपंचों से दूर, जगद्वन्द्य ऋषियों को मानते हैं। समाज से सम्पर्क रखते हए भी वे समाज से अलिप्त, अनासक्त होकर विचरण करते हैं । मान-अपमान, निन्दा-प्रशंसा, दुःख-सुख, सर्दी-गर्मी आदि में समभाव रखते हैं। इन्द्रियजयी होकर मोक्षमार्ग पर चलते हैं। सदैव स्वरूप में रमण करते रहते हैं। किन्तु अक्रियावादी विश्ववन्द्य ऋषियों के अस्तित्व को नहीं मानते । वे कहते हैं- ऐसे कोई ऋषि हो ही नहीं सकते जो विकारों पर विजय या सकें । जो भी ऋषि बनते हैं, वे सब ढोंगी, पाखण्डी, वेषधारी और अयोग्य होने से वे साधु नहीं स्वादु हैं। क्रियावादी इसका खण्डन करते हुए कहते हैं - सच्चे ऋषि थे, हैं, और भविष्य में भी होंगे। हाँ, उनकी जीवन-साधना में द्रव्य क्षेत्र-काल-भाव के अनुसार तारतम्य अवश्य रहेगा, किन्तु उनका अस्तित्व सर्वथा मिट नहीं सकता।
परिनिर्वाण परिनिवृत और सिद्धि का अस्तित्व-क्रियावादियों का कहना है कि सम्यक्त्व के (चतुर्थ) गुणस्थान से आगे बढ़ते-बढ़ते जीव क्रमशः
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