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२७६ | सद्धा परम दुल्लहा
आठों कर्मों के बन्ध के कारण
आठों ही कर्मों के बन्ध के पृथक्-पृथक् कारणों का निरूपण भगवती में बताया गया है । संक्षेप में वह इस प्रकार है
सूत्र
(१-२) ज्ञानावरणीय दर्शनावरण कर्म बन्ध के कारण- ज्ञान या ज्ञानी अथवा दर्शन या दर्शनवान् के प्रति प्रतिकूलता से, ज्ञान या ज्ञानी, दर्शन या दर्शनी का नाम छिपाने से, उनके साथ द्व ेष व मात्सर्य करने से, उनके अभ्यास में अन्तराय डालने से, उनकी निन्दा - आशातना करने से, उनके साथ विसंवाद - कलह करने से ।
(३) सातावेदनीय असातावेदनीय कर्मबन्ध के कारण - समस्त प्राणियों के प्रति अनुकम्पा करने, उन्हें सुख देने, शोक पैदा न करने, विलाप न कराने, अश्रुपात न कराने, न पीटने और न ही किसी प्रकार का परिताप पहुँचाने से सातावेदनीय का बन्ध होता है । इनके विपरीत कारणों से असातावेदनीय कर्म का बन्ध होता है ।
(४) मोहनीय कर्म बन्ध के कारण - तीव्र क्रोध, मान, माया और लोभ से, तीव्र दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय से मोहनीय कर्मबन्ध होता है ।
(५) आयुष्य कर्म बन्ध के कारण --- नरकायुबन्ध -- महारम्भ, महापरिग्रह, मांसाहार या मृतक भक्षण और पंचेन्द्रिय वध से ।
तिर्यञ्चायु बन्ध - परवंचन से, माया से, कपट क्रिया करने से, झूठ बोलने से, झूठा नाप-तोल करने से
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मनुष्यायु-बन्ध - प्रकृति - भद्रता ( सरल स्वभाव ), प्रकृति विनीतता से, दयावान् होने से और मात्सर्य न होने से ।
देवायुबन्ध - सराग संयमपालन से, सराग गृहस्थ धर्म के पालन से, अकामनिर्जरा से तथा बाल (अज्ञानपूर्वक) तप करने से ।
(६) नाम कर्म बन्ध के कारण - शुभनामकर्म बंध के ४ कारण
(१) काया की ऋजुता (शरीर से किसी के साथ छल न करने से - सरलता) से, (२) भाषा की ऋजुता, (३) भावों की ऋजुता एवं ( ४ ) मन-वचन काया की प्रवृत्तियों की अविसंवादिता - अवक्रता से ।
अशुभ नामकर्म बंध के ४ कारण - ( १ ) काया की वक्रता से,
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