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सम्यग्दृष्टि का चौथा चिन्ह : अनुकम्पा | २१३ वह आता है, जो अपना ही स्वार्थ देखता है, अपने ही सुख एवं मतलब की बात सोचता है, उसमें पशु वर्ग एवं पशुवृति वाले मनुष्य आते हैं। वस्तुतः देखा जाए तो ऐसा घोर स्वार्थी व्यक्ति सच्चे माने में आत्मानुकम्पी भी नहीं है । क्योंकि वह अपनी आत्मा की रक्षा भी नरकादि दुर्गतियों, पापों, आदि से नहीं करता, वह धर्म की मूलभत अनुकम्पा से दूर है, भले ही कुछ साम्प्रदायिक धर्मक्रियाएँ करके धर्मात्मा बनने का, या दानादि देकर धर्मिष्ठ कहलाने का दम्भ कर लेता हो । निष्कर्ष यह है कि किस व्यक्ति में सम्यम्दर्शन है ? इसकी परख-पहचान केवल आत्मानुकम्पी या आत्मानुकम्पीपरानुकम्पी इन प्रथम और तृतीय भंगों पर से करनी चाहिए ।
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