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२०० | सद्धा परमं दुल्लहा
यद्यपि अविरत - सम्यग्दृष्टि व्यक्ति सहसा आरम्भ-त्याग तथा विषयों एवं कामभोगों से सर्वथा निवृत्त नहीं हो पाता । परन्तु सम्यग्दृष्टि पुरुष का ज्ञान सम्यक् हो जाता है, वह वस्तुस्वरूप को यथार्थ रूप से समझ लेता है, चारित्रमोहनीय कर्म के उदयवश वह आरम्भ-परिग्रह का तथा विषय-भोगों का सर्वथा त्याग नहीं कर सकता, परन्तु चारित्रमोहनीय का क्षयोपशम या क्षय हो जाए तो वह आरम्भ-परिग्रह से तथा विषय-भोगों से सर्वथा निवृत्त होकर चारित्र अंगीकार करके एक दिन मोक्ष भी प्राप्त कर सकता है । उसके लिए मोक्ष का द्वार खुल जाता है । वह चाहे तो पुरुषार्थ द्वारा मुक्ति प्राप्त कर सकता है ।
ऐसे व्यक्ति का वैराग्य ज्ञानगर्भित निर्वेद होता है । वह सांसारिक विषयभोगों, पदार्थों तथा कामभोगों एवं उनके निमित्तों को ज्ञान की दृष्टि से देखता है । कामी पुरुषों या अज्ञानी मिथ्यादृष्टियों के मन में जहाँ संसार के मनोज्ञ विषय या पदार्थ कामना या वासना उत्पन्न करते हैं, वहाँ वे ही पदार्थ निर्वेदसम्पन्न ज्ञानी पुरुषों के मन में सम्यग्ज्ञान उत्पन्न करते हैं, वे उनमें मोह, आसक्ति या रागभाव करके फँसते नहीं हैं। मान लीजिए - एक वेश्या सोलह शृंगार सजकर बाजार से होकर जा रही है, सामने से निर्वेदप्राप्त ज्ञानी पुरुष आ रहा है । अव्वल तो ज्ञानी व्यक्ति उसकी ओर दृष्टि ही नहीं करेगा । कदाचित सहसा उसकी दृष्टि पड़ जाएगी, तो वह विचार करेगा- पूर्वकृत पुण्य के प्रभाव से इस नारी को ऐसा अनुपम सौन्दर्य एवं सुडौल मानव शरीर मिला है, किन्तु बेचारी मोहवश अज्ञान दशा में यह थोड़े से पैसों के लिए अपना सुन्दर शरीर बेच देती है, शील लुटा देती है । कैसी मोह की विडम्बना है । अगर इसने अपना शरीर परमात्मा के पावन चरणों में या आत्मकल्याण में अर्पण किया होता, या रत्नत्रय की सर्वतः या देशतः आराधना की होती तो इसका जीवन सार्थक हो जाता यह भवभ्रमण के चक्र से बच जाती । इस प्रकार निर्वेद प्राप्त ज्ञानी साधक वेश्या को देखकर अपने ज्ञानोपयोग में वृद्धि करते हैं, आत्मभावों में दृढ़ होते हैं, वहाँ अज्ञानी पुरुष वेश्या को देखकर नाना प्रकार के गन्दे, अश्लील और कुत्सित विचारों में डूबकर पाप कर्मबन्धन करते हैं. अज्ञान बढ़ाकर संसार परिभ्रमण का मार्ग प्रशस्त करते हैं ।
निर्वेद सम्पन्न ज्ञानी पुरुषों की संगति से सम्यग्दृष्टि गृहस्थ भी अपने जीवन को धन्य बना सकता है । इसीलिए निर्वेद को सम्यग्दृष्टि को परखने का एक महत्वपूर्ण बाह्य चिन्ह बताया गया है।
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