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१६४ | सद्धा परम दुल्लहा
जीव अपने कुटुम्ब शरीर आदि का परिपालन करता हुआ भी उनसे अपने आपको पृथक् समझता है ।
अब दूसरी दृष्टि से आध्यात्मिक वैषम्य का विचार कर लें जो बहिरात्म है, शरीर और उससे सम्बन्धित वस्तुओं और व्यक्तियों आदि पर 'मैं' और 'मेरेपन' की छाप लगाता है । शरीर को 'में' समझने वाले व्यक्ति प्रायः अपना अधिकांश समय, श्रम, धन, साधन, मनोयोग और शरीर और उसके साथ जुड़े हुए परिकर के निमित्त खपाते हैं । वे पेट की भूख इन्द्रियों की विविध लिप्साओं और मन-बुद्धि की विविध आकांक्षाओं एवं फरमाइशों की पूर्ति करने और उनके निमित्त दौड़धूप करने में ही लगे रहते हैं । शरीरादि के निमित्त से हुए इस आध्यात्मिक वैषम्य के साथ-साथ मन के निमित्त से हुए आध्यात्मिक वैषम्य में उलझा हुआ व्यक्ति आध्यात्मिक समत्व के मंगल द्वार तक पहुँच ही नहीं पाता ।
मन की अनुचित माँगें और आदतें भी आध्यात्मिक विषमता उत्पन्न करती हैं । मन में बड़प्पन का अहंकार रूपी विषधर फन फैलाए रहता है । अहंकार के कारण दूसरों के प्रति ईर्ष्या, द्व ेष, छल, मोह, अभिमान, क्रोध, वैर-विरोध तथा वैभव तथा अमोरी का प्रदर्शन, फिजूलखर्च, विषयसुखलिप्सा, आमोद-प्रमोद, रागरंग आदि चेष्टाएँ भी आध्यात्मिक वैषम्य को बढ़ावा देती हैं ! मन में महत्त्वाकांक्षाएँ उठती हैं, उनकी पूर्ति के लिए शरीर सज्जा से लेकर अमीरी के खर्चीले ठाठ -वाट बनाने के लिए दौड़-धूप करनी पड़ती है । किसी समय मन में कामवासना और विषय भोगों में सुख लिप्सा और विषय सुखानुभूति की लालसा बढ़ती है । बहिरात्मा का मन रात-दिन प्रायः यही सोचता रहता है कि किसी तरह यह शरीर पाँचों इन्द्रियों के विषयभोगों का आनन्द ले ले । इस प्रकार शरीर को 'मैं' ही समझने वाला जितना इन्द्रिय विषयसुख खरीदता है, उतना ही बल्कि, उससे भी अधिक दुःख मोल ले लेता है । वासना, कामना, तृष्णा और मोह-ममता की इन विकट घाटियों से पार उतरने में ही दिन भर का ही नहीं जिन्दगी का लम्बा समय खप जाता है । ऐसे शरीरमोही शरीरासक्त एवं देहाध्यास या शरीर भाव से ग्रस्त लोग अपनी सारी कमाई प्रायः शरीर के लिए खर्च कर डालते हैं । वे शरीर के लिए ही जीवित रहते हैं । इस आध्यात्मिक विषमता के भँवर में फंस कर वे आत्मचिन्तन, आत्महित, आत्मशुद्धि अथवा आत्मविकास की बात सोच ही नहीं सकते ।
फिर शरीर से सम्बन्धित वस्तुओं, भावों या व्यक्तियों का क्षेत्र काफी विस्तृत है | अपने माने हुए परिवार, धर्मसम्प्रदाय, जाति, प्रान्त राष्ट्र भाषा
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