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________________ दृष्टि बदलिए, सृष्टि बदलेगी जीवन की दो प्रमुख धाराएं : दष्टि और सृष्टि मानव-जीवन की दो प्रमुख धाराएँ हैं । एक है दृष्टि और दूसरी है सृष्टि । दृष्टि का अर्थ केवल देखना ही नहीं है, किन्तु गहराई से चिन्तनमनन, विश्वास, दीर्घदर्शिता या भावना है । और सृष्टि का अर्थ यहाँ संसार या जड़चेतनात्मक विश्व नहीं, किन्तु सृजन है। वह सृजन प्रकृति के द्वारा नहीं, मनुष्य के द्वारा किया गया सृजन है। मनुष्य के द्वारा किया गया निर्माण, रहन-सहन, रीति-रिवाज, सभ्यता, संस्कार आदि ही सृष्टि है। प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ विचारशील प्राणी मानव है। मानव के सामने सर्वप्रथम प्रश्न यह है कि वह पहले दृष्टि बदले या सृष्टि ? दोनों में से किसे बदलना आवश्यक है ? पहले दृष्टि बदलो कई विचारधाराएँ दृष्टि को पहले बदलने की बात कहती हैं। उनका कहना है कि यदि मनुष्य अपनी दृष्टि को बदल दे तो उसकी सृष्टि स्वतः बदल जाएगी। जब तक दृष्टि नहीं बदलेगी तब तक मनुष्य उचित विकास नहीं कर पाएगा। जैनदर्शन यथार्थवादी दर्शन है। वह वस्तु की तह में पहुँचकर उसके बाह्य और आभ्यन्तर स्वरूप पर विचार करता है । प्रत्येक प्रवृत्ति और वृत्ति के पीछे यदि दृष्टि यथार्थ है तो उससे होने वाली सृष्टिअर्थात् उस प्रवृत्ति और वृत्ति से होने वाला कार्य भो यथार्थ शुद्ध और (६८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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