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________________ आत्मविश्वास की अजेय शक्ति | ५५ को अपनाने से कोई विशेष लाभ नहीं है। बल्कि एक लक्ष्य या निर्धारित कार्य पर एकाग्र होकर चलने से परिस्थितियाँ अनुकूल हो जायेंगी। अपने स्वभाव एवं आदतों को बदलें साथ ही व्यक्ति का आत्मविश्वास तभी प्राणवान् और स्थिर होगा, जब वह अपने स्वभाव, प्रकृति और आदतों को बदले । कई बार मनुष्य का स्वभाव एवं आदतें उन्नति में बाधक हो जाती हैं। कई व्यक्तियों का स्वभाव होता है, आलस्यवश अपने निर्धारित लक्ष्य या कार्य की दिशा में आगे नहीं बढ़ते, वे आज, कल, परसों पर कार्य को ठेलकर उस कार्य में विलम्ब, दीर्घसूत्रता या टालमटूल करते रहते हैं। फिर लम्बा अर्सा हो जाने पर उस कार्य में सफलता नहीं मिलती, तब उनका आत्मविश्वास टूट जाता है । आदतों या स्वभाव को बदलने का फिर रोज-रोज संकल्प करने पर भी वह टूट जाता है । इस प्रकार की हानिकर आदतों में धूम्रपान, मद्यपान, व्यभिचार, धुतक्रीड़ा आदि शुमार हैं । इनसे पिण्ड छुड़ाने के लिए उनके स्थान पर लाभदायी आदतें अपनाई जाएँ। ऐसे व्यक्ति ओटो सजैशन (आत्मपरामर्श) के द्वारा भी अपनी आदतों, स्वभाव, रोग आदि को मिटा सकते हैं। अवचेतन मन को इस प्रकार के ओटो सजेशन बार-बार देने चाहिये। इससे व्यक्ति की कठिनाइयाँ, बाधाएँ एवं समस्याएँ भी दूर होंगी। आत्मविश्वास : सर्वतोमुखी सफलता का प्राण __ इस प्रकार सफलता के मन्दिर में प्रवेश करने के लिए आत्मविश्वास को अपनाइए । यह नवयुवकों एवं साधकों के लिए मशाल की तरह उपयोगी है, वृद्धों के लिए लाठी की तरह है। आत्मविश्वास ऐसा धन है, जिसे कोई छीन नहीं सकता। इसका संग्रह आपके जीवन को प्राणवान् और मस्तिष्क को ज्ञानवान् बनाएगा। इसका बार-बार उपयोग आपकी आत्मशक्तियों को बढ़ाएगा । अतः आत्मविश्वास का उपयोग करें। यही मानव-जीवन की अमूल्य निधि है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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