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सफलता का मूलमंत्र : विश्वास | २५
को सहायता के बिना देख नहीं सकते, वे अगम-अगोचर पदार्थों के विषय में कुतर्क करके अविश्वास पैदा करें यह कितनी मूर्खता है !
जो लोग कहते हैं कि परमात्मा हमारे समक्ष प्रत्यक्ष नहीं आते या हमें प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देते, इसलिए हम नहीं मानते, वे भी केवलज्ञानी हुए बिना अपने अधूरे ज्ञान के चश्मे से कैसे परमात्मा को भली-भांति जानदेख सकते हैं ? कई नास्तिकों ने अपने पितामह-प्रपितामह को आँखों से नहीं देखा, फिर भी वे मानते ही हैं कि हमारे दादा-परदादा ये। अगर वे न मानें ता, परदादे-दादे के बिना वे इस संसार में कैसे आये ? परदादे से दादा हुआ, दादे से उसका पिता हुआ और पिता से वह नास्तिक हुआ । इस प्रकार कई अगम-अगोचर बातें--(आत्मा-परमात्मा, स्वर्ग-नरक, पुण्य-पाप, कर्म-कर्मफल आदि) आप्त वचनों से या अनुमान से माननी ही पड़ती हैं । उन पर अविश्वास का कोई कारण नहीं !
गुरुतत्त्व के विषय में अविश्वास भी अनुचित निर्ग्रन्थ, महाव्रती गुरु श्रद्धेय एवं विश्वसनीय इसलिए होते है कि वह स्वयं धर्माचरण करके आगे बढ़े हैं, आत्मशान्ति, आत्मविकास एवं आत्मशुद्धि प्राप्त की है, मोक्षमार्ग पर चलकर लक्ष्य के निकटद्वार तक पहुँचे हैं । अतः वे अपनी ओर से कोई मनगढन्त बात नहीं कहते, वे वीतराग सर्वज्ञ आप्त तीर्थंकरों द्वारा उपदिष्ट बातों को स्पष्ट रूप से श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत करते हैं, जिन्हें त्याग, वैराग्य, तप, धर्मध्यान, व्रत पालन करने आदि में रुचि एवं श्रद्धा होती है, उन जिज्ञासु एवं मुमुक्षजनों को वे उस प्रकार का संकल्प कराते हैं। किसी भी व्यक्ति को धर्माचरण व्रतपालन, त्याग, तप आदि के लिए बाध्य नहीं करते, न ही किसी पर बलात् थोपते, क्योंकि उन्हें किसी से कोई स्पृहा या स्वार्थ नहीं होता। वे संघ में ज्ञानदर्शन-चारित्र की उन्नति के लिए एवं स्वयं रत्नत्रय की साधना के लिए अहर्निश तत्पर रहते हैं । अतः ऐसे गुरुजनों, निःस्वार्थ धर्मोपदेशकों एवं त्यागी, महाव्रती, साधु-साध्वियों के प्रति अविश्वास का भी कोई कारण नहीं। उनके सान्निध्य में किसी भी सांसारिक उलझन, संकट, कष्ट या दुःख को मिटाने के लिए अनुभवसिद्ध कोई न कोई धर्मानुकूल उपाय मिलेगा ही।
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